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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति 'नरतिय कज्जल रेह नयणि मुँह कमल तंबोलो । नागोदर कंठलउ कंठि अनुहार विरोलो ।' छन्द सौकर्य के लिए स्वरों को लघु या दीर्घ करने के अलावा परवर्ती वर्णों को द्वित्त करके पूर्ववर्ती लघुस्वर को दीर्घ कर देने की प्रथा भी चल पड़ी थी जैसे भखै, रखे के स्थान पर भक्ख, रक्खे आदि । वर्ण-संकोच के उदाहरणों की भरमार है जैसे अरण्य या रण्य, 'प्रणाम करू' के लिए 'पणउं' और स्थान के लिए ठांण आदि । द्वित्त के उदाहरणस्वरूप निद्रा का निद्द, दुर्ग का दुग्ग और विद्या का विज्ज आदि रूप देखा जा सकता है। ७५ ये कुछ नमूने इसलिए दिए गये हैं ताकि मरुगुर्जर भाषा की कतिपय मुख्य प्रवृत्तियों का पता चल सके जो सभी आधुनिक आर्य भाषाओं - हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि में समान रूप से विकसित हुई हैं, इसके कारण एक ही रचना को विभिन्न विद्वान् अलग-अलग भाषा की रचना घोषित करते हैं। जंबूसामीचरिउ, स्थूलिभद्ररास और सुभद्रा सती को कुछ विद्वान् गुजराती की रचना बताते हैं और कुछ दूसरे हिन्दी की रचनायें घोषित करते हैं जबकि वस्तुतः ये मरुगुर्जर की रचनायें हैं । इसी प्रकार अंबदेव के समरारास को नाहटा जी राजस्थानी की रचना और डॉ० प्रेमसागर उसे हिन्दी की रचना बताते हैं । इससे हिन्दी, राजस्थानी और गुजराती की मौलिक एकता और इन भाषाओं से मरुगुर्जर का पूर्वापर सम्बन्ध सूचित होता है । अन्त में यह बताना आवश्यक है कि अपभ्रंश और देशभाषा को एक मानना युक्तिसंगत नहीं है । मुखसुख के कारण प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंश से देशी भाषायें लगातार समास से व्यासपरक होती गई हैं और यह इतना बड़ा अन्तर है कि दोनों अन्ततः दो भाषायें बन जाती हैं । स्वयंभू, पुष्पदन्त अपभ्रंश के कवि हैं किन्तु पुष्पदन्त के चालीस-पचास वर्ष पश्चात् रचित श्री चन्द्रकृत कथाकोष में देशी भाषा या मरुगुर्जर के अनेक प्रयोग मिलते हैं इस काल में अपभ्रंश और देशी भाषा में समानान्तर रूप से रचना होती रही । कथाकोष की भाषा का एक नमूना देखिये 'संसार असार सव्वु अथिरु, पिय पुत्तमित्त माया तिमिरु ।' इससे स्पष्ट होता है कि यह बोलचाल की भाषा साहित्यिक अपभ्रंश से आगे की विकसित भाषा है और यही विकसित रूप में मरुगुर्जर कही गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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