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( ८ ) हिन्दी साहित्य के आदिकाल में जिन वीरकथाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान मिला था, वे प्रायः जाली, क्षेपक, परवर्ती और अप्रामाणिक सिद्ध होती जा रही हैं इसलिए प्रामाणिक जैनसाहित्य का महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है और भविष्य में 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल' जैन साहित्य के अभाव में अपूर्ण समझा जायेगा। मरु-गुर्जर जैन साहित्य के शिल्प, छन्द विधान, काव्यरूपों आदि का हिन्दी, गुजराती आदि के साहित्य पर बड़ा व्यापक प्रभाव पड़ा है किन्तु इसका अब तक हिन्दी भाषा में कोई इतिहास उपलब्ध नहीं था। अतः इस कार्य द्वारा पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान ने एक महती आवश्यकता की पति की है, एतदर्थ संस्थान के निदेशक एवं प्रवन्धक धन्यवाद के पात्र हैं ।
समस्त जैन साहित्य में धर्म की प्रधानता के कारण प्रवत्ति के आधार पर भिन्न भिन्न युगों का बँटवारा संभव नहीं था। प्रमु व लेखकों के आधार पर भी युगों का नामकरण करना एक जटिल प्रश्न या अतः समस्त मरु-गुर्जर जैन साहित्य को शताब्दियों के आधार पर बांटकर प्रत्येक शताब्दी के लेखकों को अक्षरानुक्रम से प्रस्तुत किया गया है । इस क्रम का कई कारणोंवश कहीं-कहीं पूर्ण तया पालन नहीं हो पाया है, अतः पाठकों से निवेदन है कि वे थोड़ा आगे-पीछे देख लें उनका वांछित कवि कुछ इधर-उधर अवश्य मिल जायेगा, इस इतिवृत्त ग्रन्थ में प्रायः पांच सौ कवियों और उनकी सहस्रों कृतियों का विवरण दिया गया है। इसलिए कहीं कुछ भल हो जाना असंभव नहीं है। पुनरुक्ति भी हो गई है। असायत, डुगरु, वच्छ भंडारी-वस्तिग, लाखू आदि कुल सात-आठ कवियों को दुहराया गया है, इसका कारण है उपजीव्य ग्रन्थों में उन नामों में पूनरुक्ति या पारस्परिक मतभेद । यह मतभेद गुरु-परम्परा, रचनाकाल या रचयिता को लेकर है। इसलिए पुनरुक्ति हो गई है। किसी कवि के बारे में अन्तिम समय पर कुछ आवश्यक नवीन सामग्री मिल जाने पर भी ऐसा करना पड़ा है। प्रूफ पढ़ने में असावधानी के कारण अशुद्धियाँ अधिक रह गई हैं । एक शुद्धिपत्रक लगा दिया गया है, पाठक इससे सहायता लेकर शुद्ध पढ़ने की कृपा करें और कष्ट के लिए क्षमा करें। अशुद्धियों को अगले संस्करण में सुधार दिया जायेगा।
पुस्तक छह अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में मरु-गुर्जर के प्रारम्भ अर्थात् १३वीं शताब्दी से पूर्व की अपभ्रंश भाषा उसके साहित्य की संक्षिप्त उद्धरणी पीठिका के रूप में दी गई है। इसी अध्याय में मरु-गुर्जर शब्द की निरुक्ति और उसकी पुरानी हिन्दी से एकरूपता पर भी प्रकाश
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