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________________ डाला गया है। जैन साहित्य में रस-भक्ति और काव्यरूपों की विविधता की एक झलक भी इसी अध्याय के अन्त में मिलेगी क्योंकि हिन्दी साहित्य को इन विषयों में मरु-गुर्जर से बड़ा अवदान मिला है। दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्यायों में क्रमशः १३वीं, १४वीं, १५वीं और १६वीं शताब्दी के जैन काव्य और कवियों का इतिवृत्त दिया गया है। प्रायः प्रकाशित साहित्य और उसके ज्ञात कवियों को ही अपनी समय-स्थान की सीमा के कारण ग्रन्थ में स्थान दिया गया है। जिन रचनाओं का रचनाकाल, स्थान और रचयिता या उसकी गुरु-परम्परा आदि का प्रश्न विवादास्पद है उन्हें शोधार्थियों के लिए छोड़ दिया गया है। छठे अध्याय में १३वीं से १६वीं शताब्दी के उपलब्ध गद्य साहित्य और उसके लेखकों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। साथ ही प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश में प्राप्त गद्य साहित्य का संकेत भी पूर्व सन्दर्भ के रूप में कर दिया गया है। इस प्रकार १३वीं से १६वीं शताब्दी तक के गद्य और पद्य का संक्षिप्त इतिहास देने की यथासंभव चेष्टा की गई है। इसमें जो कमियाँ रह गई हैं, उनके लिए आपके सुझावों का सदैव स्वागत है और हम तदनुसार संशोधन करने का प्रयत्न करेंगे। नये और अल्पज्ञात लेखकों को प्रोत्साहन देने की बातें तो खूब की जाती हैं पर जब वास्तविक अवसर आता है तो हमारे साहित्यिक मसीहा मुकर जाते हैं । डॉ० सागरमल जैन ने मेरी अल्पज्ञता के बावजूद भी यह कार्य मुझे सौंपा, आवश्यक सुविधा प्रदान की, इसके लिए मैं उनके प्रति पुनः आभार व्यक्त करता है। इस अवसर पर मैं अपने पूज्य पिता श्री शत्रुघ्न प्रसाद मिश्र का सादर स्मरण करता हूँ जिनकी प्रतिभा अवसर की तलाश में अपनी सही पहचान भले न बना पाई किन्तु मेरे लिऐ अजस्र प्रेरणा का स्रोत अवश्य बन सकी। संस्थान के अन्य अधिकारियों, कार्यकर्ताओं विशेष रूप से डॉ० अशोक कुमार सिंह, डॉ० शिव प्रसाद, श्री मोहनलाल एवं श्री महेन्द्र यादव का भी अनुगहीत हैं क्योंकि इन लोगों की समय-समय पर अयाचित सहायता के बिना मेरे लिए यह कार्य दुष्कर ही था। प्रूफ शोधन, अनुक्रमणिका और पुस्तक सूची तैयार करने में चि० असीम ने काफी श्रम किया, उसे साधुवाद के साथ यह ग्रन्थ लोकार्पित करता हूँ। नवरात्रारम्भ वि० सं० २०४६ वाराणसी ३०-९-८९ डॉ० शितिकण्ठ मिश्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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