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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास व्यापार का पतन हो गया था । प्रत्येक गांव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयम् करने के लिए बाध्य हो गया था । अनेक छोटे-छोटे राज्यों की सीमा पर लगने वाले शुल्कों की बाढ़ और चोरों, डाकुओं से व्यापारियों को राजकीय संरक्षण तथा सुरक्षा का सर्वथा अभाव व्यापार के पतन का मुख्य कारण था । कथासरित्सागर में ऐसे शुल्क चोर व्यापारियों का भी उल्लेख मिलता है जो शुल्क की चोरी की नीयत से जंगलों में से होकर सार्थवाह ले जाते थे और डाकुओं को धन देकर संरक्षण प्राप्त करते थे अन्यथा लूटे जाते थे । व्यापार वाणिज्य के ह्रास के कारण देश के एक भाग से दूसरे भाग में आना जाना प्रायः बन्द पड़ गया और सामान्य लोग अपने गांवों में ही बँधकर रहने तथा अपने मालिकों की फर्माइश पूरी करने के लिए बाध्य हो गये । समुद्री यात्रा भी निषिद्ध हो गई । इन सब कारणों से भी व्यापार का पतन हुआ । किसान, कारीगर और व्यापारी अपने-अपने गांव में बँधकर रहे इसलिए अर्थव्यवस्था अवरुद्ध हो गई । कलिवर्ज्य के अन्तर्गत लम्बी यात्रा, समुद्र यात्रा आदि करने पर प्रायश्चित्त आवश्यक कर दिया गया। गांवों में हर वर्ण के रहने का क्षेत्र नियत कर दिया गया । इस प्रकार देश धर्म के बदले ग्राम धर्म का महत्त्व बढ़ गया, लोगों की दृष्टि से देश ओझल होने लगा और ग्राम अपने भीषणाकार में उभड़ने लगा । हेमचन्द्र के अभिधानचिंतामणि में ग्रामधर्म तथा अन्य ग्रन्थों में ग्राम्याचार और स्थानाचार का उल्लेख मिलता है । ६६ धार्मिक स्थिति – इस काल की धार्मिक अवस्था और प्रमुख धर्मों का संक्षिप्त परिचय मरुगुर्जर जैन साहित्य के अध्ययन के लिए आवश्यक है । अतः यहां प्रमुख धर्मों की स्थिति पर एक विहंगम दृष्टि डाली जा रही है । पौराणिक हिन्दू धर्म - वैदिक ब्राह्मण धर्म के स्थान पर इस युग में "पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय एक प्रमुख घटना है । वैदिक यज्ञ और कर्मकांड के स्थान पर सरल भक्तिमार्ग का अभ्युदय हुआ । धर्म को शास्त्र के स्थान पर लोक जीवन से जोड़ा गया । शंकर दिग्विजय के बाद बौद्ध.. धर्म का भारत से उन्मूलन और हिन्दू धर्म आन्दोलन ने आगे चलकर इसे अधिक लोकप्रिय आकर्षक रूप में लोकमत की तरह जनता में स्वीकृत हुआ । का उत्कर्ष हुआ । भक्ति बनाया । यह सुकर और १. डॉ० शितिकण्ठ मिश्र ' आदिकाल की राज० पृष्ठभूमि हि० सा० का बृ० इतिहास भाग ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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