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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति यह रचना की गई । इनके गुरु का नाम सिद्धसेन था। यह रचना जयराम कृत धम्मपरिक्खा के आधार पर हुई है। किन्तु प्राकृत की यह रचना उपलब्ध नहीं है। इनके समकालीन अमितगति ने २६ वर्ष बाद धर्मपरीक्षा संस्कृत में लिखी। इसमें ब्राह्मण धर्म पर व्यंग्य है। प्राकृत में हरिभद्र रचित धूर्ताख्यान इस रचना का पूर्ववर्ती प्रेरक ग्रन्थ समझा जा सकता है। धूर्ताख्यान में व्यंग्य हलका है किन्तु धम्मपरिक्खा में बहुत कड़ा है। कथाकोष—श्री चन्द्र कवि कृत ५३ संधियों की यह अप्रकाशित रचना है। यह कवि आ० कुन्दकुन्द की परम्परा में वीरचन्द का शिष्य था। यह अणहिलपुर के मूलराज का समकालीन था। यह मूलराज द्वितीय (सं०.११७६११७८) हो सकता है। इसमें ५३ कथायें संकलित हैं। सभी धार्मिक और उपदेश प्रधान हैं । कथाओं में पशु-पक्षियों को भी पात्रों के रूप में प्रस्तुत किया गया है । इस परम्परा में सोमप्रभाचार्य कृत कुमारपाल प्रतिबोध के अन्तर्गत स्थूलिभद्र कथा है । दूसरी रचना 'छक्कम्मोवएस' (षट्कर्मोपदेश रत्नमाला) चालुक्यवंशी राजा कृष्ण के शासनकाल सं० १२४७ में लिखी गई है। प्रो० हीरालाल जैन ने सुअन्धदहमीकथा, उद्धरणकथा आदि कथा ग्रन्थों का उल्लेख इलाहाबाद यूनिवर्सिटी जर्नल भाग १, पृ० १८१ पर किया है। जैनेतर अपभ्रंश काव्य-जैन धार्मिक प्रबन्ध एवं मुक्तक काव्यों के अलावा इस कालावधि में अनेक लौकिक प्रबन्ध एवं मुक्तक काव्य जैनेतर कवियों द्वारा भी लिखे गये। इनमें अद्दहमाण कृत संदेशरासक सर्वप्रधान है। यह धर्म निरपेक्ष लौकिक प्रेमभावना को व्यक्त करने वाला एक मुसलमान कवि द्वारा लिखा गया अपभ्रंश काव्य है। यह एक संदेश काव्य है और रासक या रासो शैली में लिखा गया है। विजयनगर की एक सुन्दरी अपने प्रवासी पति के विरह में व्याकुल होकर एक पथिक् से संदेश भेजती है । इसका अन्तिम अंश बड़ा मार्मिक है। वह कहती है जइ अणक्खरु कहिउ मइ पहिय । 'घण दुक्खा उन्नियह मयण अग्गि विरहिणि पलित्ति हि, तं फरसउ मिल्हि तुहु विणियमग्गि पभणिज्ज मत्तिहि ।' अर्थात् हे पथिक् यदि विरह पीड़िता, कामाकुला मैंने कुछ अकथ्य कहा हो तो उसे सुधार कर कहना । इस काव्य में विप्रलम्भ शृङ्गार की प्रधानता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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