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________________ ५० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उनके व्याकरण से एक और सरस उदाहरण उद्धृत किया जा रहा है : 'अंगहि अंग न मिलियउ, हलि अहरे अहरु न पुत्तु, पिय जो अन्ति हे मुह कमलु अम्बइ सुरउ समत्तु ।। यहां अम्बइ-अवे, पंजाबी अवे, हिन्दी यो ही, गुजराती अमज का बोधक है। इनमें शृङ्गार, नीति, वैराग्य, वीर आदि के बड़े प्रभावशाली छन्द पाये जाते हैं। जिनसे तत्कालीन भाषा का स्वरूप समझने में बड़ी सुविधा होती है। ____ रूपक काव्य-सोमप्रभाचार्य के कुमारपाल प्रतिबोध का एक अंश 'जीव मनः करण संलाप कथा रूपक काव्य है जो मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित, सेंट्रल लाइब्रेरी, बड़ौदा से सन् १९२० में प्रकाशित है। इसमें इन्द्रियों को पात्र बनाकर प्रस्तुत किया गया है। इस परम्परा में आगे चलकर हरिदेव कृत मयणपराजय और वुच्चराय कृत मयणजुज्झ आदि रूपक रचनायें प्राप्त होती हैं। कथा साहित्य जैन लेखकों ने जनसाधारण में अपने मत का प्रचार करने के लिए नाना प्रकार की मनोरंजक कथाओं का निर्माण किया । ये कथाग्रन्थ संस्कृत के वासवदत्ता, दशकुमार आदि लौकिक कथाओं के समान ही हैं। इनमें किसी लोक प्रसिद्ध पात्र को कथा का केन्द्र बनाकर वीर, शृङ्गारादि रसों का चर्वण कराता हुआ लेखक सबका उपसंहार वैराग्य और शम में कर देता है । इनमें पूर्वभवों की अनेक अद्भुत कथायें और अवान्तर कथाओं का तानाबाना बुना रहता है। कथा साहित्य चिरन्तन काल से लोकरंजन एवं मनोरंजन का माध्यम रहा है। अतः इसका प्रवाह चिरकाल से सतत् प्रवहमान है। इस विशाल भारतीय कथा साहित्य में जैन कथा ग्रन्थों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन साहित्य में कथा की परम्परा प्राकृत संस्कृत से होती अपभ्रंश तक आई जिसमें सिद्धर्षि कृत उपमितिभवप्रपंचकथा (१०वीं), धनपाल कृत तिलकमंजरी, पादलिप्त कृत तरंगवती, संघदासगणि कृत वसुदेवहिंडी, हरिभद्रकृत समराइच्चकहा और उद्योतनसूरि कृत कुवलयमालाकहा आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। हरिषेण कृत धम्मपरिक्खा अपभ्रंश की महत्त्वपूर्ण रचना (११वीं शताब्दी) है। आपके पिता श्री गोवर्धत मेवाड़ के सिरिउजपुर में धक्कड़वंश में पैदा हुये थे। लेखक वहां से अचलपुर जाकर रहने लगा और वहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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