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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति ५७ 'रुवहु उप्परि रइ म करि, णयण णिवारहि जंत । रुवासत्त पयंगडा पेवखहि दीवि पडत ।' १२६ । - अर्थात् रूप पर रति मत कर, रूप पर आसक्त पतंग दीपक में पड़ता है । इत्यादि। प्रबन्ध काव्यों में तो यत्र-तत्र कवित्व को अवसर मिल जाता है किन्तु उपदेश प्रधान मुक्तकों में नीति, वैराग्य, श्रावकाचार, तत्त्वज्ञान जैसी गम्भीर एवं शुष्क बातें इतनी व्याप्त हो जाती हैं कि सरसता एवं कवित्व के लिए शायद ही अवकाश मिल पाता है। इनकी ऋजुकथन शैली, भाषा की प्रासादिकता अवश्य इन्हें सुबोध और पठनीय बनाये रखने में सक्षम होती है। १२वीं शताब्दी के पश्चात् संग्रहीत विविध ग्रन्थों में अपभ्रंश के स्फुट पद्य पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। ऐसे ग्रन्थों में हेमचन्द्राचार्य के व्याकरण के अतिरिक्त सोमप्रभाचार्य कृत कुमारपालप्रतिबोध, मेरुतुङ्ग कृत प्रबन्धचिन्तामणि, राजशेखरसूरि कृत प्रबन्धकोश और पुरातन-प्रबन्धसंग्रह आदि उल्लेखनीय हैं। प्रबन्ध चिन्तामणि में अनेक ऐतिहासिक महापुरुषों का आख्यान मिलता है। इसमें तैलप द्वारा मुञ्ज के बंदी किए जाने से सम्बन्धित अनेक मार्मिक पद्य पाये जाते हैं। आचार्य हेमचन्द्र के व्याकरण की चर्चा पहले की जा चुकी है। उन्होंने अपने व्याकरण में उदाहरणस्वरूप पूरे के पूरे छन्द दोहे आदि प्रचुर मात्रा में उद्धृत करके लुप्त होते हुए अपभ्रंश साहित्य को बचाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है । आप अपभ्रंश के अन्तिम महान् आचार्य हो गये हैं। आपकी रचनाओं में 'अभिधानचिन्तामणि', काव्यानुशासन, छंदोनुशासन, देशीनाममाला, द्वाश्रयमहाकाव्य, योगशास्त्र, धातुपारायण, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, परिशिष्टपर्व और सिद्धहैम या शब्दानुशान महत्त्वपूर्ण हैं । आपने कुमारपाल चरित में अपभ्रंश का सूत्र समझाया है। एक उदाहरण देखिये :-- 'गिरिहेवि अणिउ पाणिउ पिज्जइ, तरुहेवि निपडिउ फलु भणिखञ्जइ। गिरिहुंव तरुहुंव पडिअउ अच्छइ विषयहि तहवि विराउन गच्छइ।' हिन्दी रूपान्तर 'गिरिहिं मि आव्यो पानी पीजै, तरुहं मिनिपत्यो फल भक्खीजै। गिरिहुमि तरुहुमि पडियो आछै विषयहं तदपि विराम न गच्छै ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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