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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति काष्ठासंघीय माथुर गच्छ के कवि थे। आपके पिता की हरिसिंह संधी पवांया ( ग्वालियर ) वासी पुरवाल जाति के श्रेष्ठी थे। इनकी माता का नाम विजयश्री था। इनके पिता भी विद्वान् एवं कवि थे अतः विद्वत्ता इन्हें विरासत से प्राप्त थी। कहा जाता है कि इन्हें सरस्वती देवी ने स्वप्न में काव्य रचना का आदेश दिया था। अब तक इनकी २३ रचनाओं का पता चल चुका है। उनकी सूची निम्नाङ्कित है--पूण्याश्रवकथाकोष, अणथमीकथा, सम्यक्त्वकौमुदी, पार्श्वचरित, सुकौशलचरित, मेघेश्वरचरित्, पद्मचरित, धन्यकुमारचरित, सन्मतिजिनचरित, जीवन्धरचरित, करकंडु चरित, श्रीपालचरित, यशोधरचरित। इन्होंने अपनी रचना 'सम्मत गुणणिहाड' की समाप्ति का समय सं० १४९० बताया है तथा सुकौशलचरित सं० १४९६ में लिखा है। धन्यकुमारचरित में इन्होंने गुणकीर्ति को अपना गुरु बताया है। कहीं-कहीं यशःकीर्ति को भी इनका गुरु कहा है। अतः सब बातों का विचार करते हुए आपका रचना काल सं० १४६८ से १५३६ तक ठहरता है। इनके प्रसिद्ध खण्डकाव्य सुकौशलचरित में इक्ष्वाकुवंशीय राजा कीर्तिधर के पुत्र सुकौशल का महान् चरित्र चित्रित है। आपके पिता विरक्त होकर मुनि हो गये। रानी को डर लगा कि कहीं उसका पुत्र भी पिता के समान विरक्त न हो जाय इसलिए उसने नगर में मुनियों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मुनिवेशधारी अपने पिता को ही सिपाहियों द्वारा नगर-प्रवेश से वर्जित करते देख कुमार सुकौशल को भी विरक्ति हो गई और वह भी मुनि हो गया तथा जैनधर्म की साधना करके मुक्त हुआ। यह रचना रणमल्ल के आश्रय में की गई। 'सन्मतिनाथचरित' में कवि ने यशःकीर्ति को अपना गुरु कहा है और उन्हीं की प्रेरणा से उसने यह रचना गोपाचलगिरि पर की थी। वलभद्रपुराण हरिसिंह साहु को समर्पित है। इसका रचनाकाल सं० १४९६ है। सम्यक्त्वकौमुदी की रचना उन्होंने कीर्तिसिंह के लिए की थी। ये अपभ्रंश परम्परा के अन्तिम आचार्य एवं महाकवि हो गये हैं। इन्होंने संस्कृत, प्राकृत और अधिकतर अपभ्रंश में रचनायें लिखी हैं। आप दिगम्बर सम्प्रदाय के कवि थे। आप की भाषा जगहजगह तत्कालीन बोलचाल की भाषा के करीब दिखाई पड़ती है किन्तु उसका मूल ढाँचा अपभ्रंश का है। इसके शब्द थोड़े हेरफेर से व्रज, बुन्देली १. डॉ. राजाराम जैन 'अपभ्रंश भाषा के संधि कालीन महाकवि रयधू' आचार्य भिक्खु स्मृति ग्रन्थ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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