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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सिंह और सिद्ध कवि-सिंह कवि के पिता का नाम रल्हण और माता का नाम जिनमती था। इन्होंने अपनी माता के अनुरोध पर पज्जुण्णचरिउ ( प्रद्यम्नचरित) नामक काव्य ग्रन्थ लिखा । ग्रन्थ की पुष्पिका से इसके दो लेखकों-सिंह और सिद्ध का पता लगता है। हो सकता है कि दोनों सहलेखक हों या सिंद्ध की मृत्यु के पश्चात् सिंह ने ग्रन्थ पूर्ण किया हो। इसमें २१ वें कामदेव कृष्ण-पुत्र प्रद्युम्न की कथा १५ सन्धियों में प्रस्तुत की गई है । ग्रन्थ की सन्धियों के प्रारम्भ में संस्कृत के छन्द भी दिए गये हैं; अतः दोनों लेखकों में से दोनों या कोई एक लेखक संस्कृत-रचना में काव्य-कुशल मालम पड़ता है। पं० परमानन्द जैन और प्रो० हीरालाल जैन का विचार है कि सिद्ध कवि के इस ग्रन्थ का पुनरुद्धार या समापन सिंह कवि ने किया था। इसमें सौराष्ट्र देश का वर्णन, कृष्ण और सत्यभामा का वर्णन मनोहारी बन पड़ा है। सिद्ध कवि के सम्बन्ध में अधिक विवरण नहीं मिल सका है। यह रचना वि० १२ वी के अन्त या १३ वीं शताब्दी के प्रारम्भ की होगी।
हरिभद्र-आप ८ वीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध आचार्य हरिभद्र से भिन्न हैं। आपका समय १३ वीं शताब्दी निश्चित है । आप जिनचन्द्रसूरि के प्रशिष्य एवं श्रीचन्द्र के शिष्य थे। आपने वि० सं० १२१६ में नेमिनाथ या सनत्कुमारचरित नामक ग्रन्थ अणहिल पाटन में लिखा है। आप सिद्धराज एवं कुमारपाल के अमात्य पृथ्वीपाल के आश्रित कवि थे। इस ग्रन्थ का एक अंश 'सनत्कुमारचरित' के नाम से प्रकाशित हो चुका है। डॉ० हर्मन जेकोबी ने सन् १९२१ में इसे सम्पादित कर प्रकाशित कराया था। नेमिनाथचरित के ४४३ से ७८५ पद्य संख्या तक कुल ३४३ रड्डा पद्यों में सनत्कुमार का चरित्र वर्णित है। सनत्कुमारचरित यद्यपि नेमिनाथचरित का एक अंश है किन्तु वह अपने आप में पूर्ण है। इसमें कवि ने जम्बूद्वीप, भरतखण्ड, गजपुर आदि का काव्यमय वर्णन किया है। सनत्कुमार गजपुर के राजकुमार हैं जो अश्वारूढ़ होकर अनजान देश को प्रवास करते हैं। उन्हें ढूढ़ता हुआ उनका एक सखा महेन्द्र मानस सरोवर पहुँचता है; वहीं दोनों की परस्पर भेंट होती है। इसमें सनत्कुमार के विवाह, राजभोग आदि गृहस्थ जीवन के पश्चात् वैराग्य और स्वर्ग प्राप्ति का वर्णन किया गया है। इस काव्य ग्रन्थ में प्रेमतत्त्व अधिक प्रस्फुटित हुआ है । प्रेम के दोनों पक्षोंसंयोग और विप्रलम्भ का सुन्दर वर्णन कवि ने यत्र-तत्र किया है। नारी शोभा, प्राकृतिक छटा, वसन्त वर्णन आदि भी मनोहर बन पड़े हैं। नारी सौन्दर्य का एक वर्णन यहाँ प्रस्तुत है
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