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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति ४७ वील्हा और पिता का नाम गोल्ह था। आप हरियाणा के रहने वाले थे। आपने वहीं के नट्टल साहु की प्रेरणा से तीन रचनायें 'पासणाहचरिउ', 'सुकमालचरिउ' और 'भविसयत्तचरिउ' का प्रणयन किया। इनका रचना काल सं० ११८९ से १२३० के बीच निश्चित किया गया है। पासणाहचरिउ की रचना दिल्ली में सं० ११८९ में हुई। इसमें कवि ने दिल्ली प्रदेश, दिल्ली नगर और यमुना का वर्णन किया है। सुकमालचरिउ की रचना वलउ ( अहमदाबाद ) में सं० १२०८ में हुई। यह ग्रन्थ साहु पीथा के पुत्र कुमार के आग्रह पर लिखा गया। इसमें सुकमाल स्वामी के पूर्वभवों का वर्णन है । वे अपने पूर्वभव में कौशाम्बी के राजमंत्री के पुत्र थे। संसार से विरक्त होकर तप किया ओर उज्जैन में सुकमाल नाम से जन्म लिया। 'भविसयत्तचरिउ' की रचना सं० १२३० में हुई। यह कृति माथुरवंशी नारायण साहु की पत्नी रुप्पिणी के लिए लिखी गई। इसमें श्रुतपंचमी-व्रत के माहात्म्य को भविष्यदत्त के चरित्र के माध्यम से प्रकट किया गया है। यह ६ सन्धियों और १४३ कड़वकों में लिखा एक सुन्दर ग्रन्थ है। इनकी कृतियों में काव्यत्व के साथ जैन सिद्धान्तों का अच्छा समन्वय हुआ। ये रचनायें १३ वीं शताब्दी की संक्रान्तिकालीन भाषा का स्वरूप जानने के लिए महत्त्वपूर्ण माध्यम है। __ देवसेन गणि-आपकी रचना 'सुलोचनाचरिउ' २८ सन्धियों में लिखित १३ वीं शताब्दी की महत्त्वपूर्ण कृति है। इसका रचनाकाल निश्चित नहीं है। आप विमलसेन गणधर के शिष्य थे। सुलोचना की कथा जैन कवियों का प्रिय विषय रही है। कुवलयमाला में उद्योतनसूरि ने भी इस कथा का जिक्र किया है। पुष्पदन्त, धवल और रविषेण आदि ने इस कथा पर आधारित काव्य ग्रन्थ लिखे हैं। यह कवि पुष्पदन्त से प्रभावित प्रतीत होता है। सुलोचना चक्रवर्ती भरत के प्रधान सेनापति जयकूमार की धर्मपत्नी थी और राजा अकम्पन की पुत्री थी। इसमें सुलोचना के स्वयंवर के अवसर पर सुलोचना को प्राप्त करने के लिए भरत के पूत्र अर्थकीर्ति और जयकुमार के युद्ध का वर्णन प्रभावशाली ढंग से किया गया है। एक उदाहरण प्रस्तुत है "झरझरंत पव हिय बहुरत्तई, णं कुसभं रय रायं रत्तइ । चरमरंत फाडिय चल चम्मइं, कसमसंत चरिय तणु वम्मइं।" इत्यादि । इस उदाहरण से इनको भाषा की बानगी मिल जाती है। इसमें अनुप्रास आदि अलंकारों द्वारा युद्ध वर्णन को सजीव बनाने का अच्छा प्रयास दिखाई पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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