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मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य
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इसमें भी तुकान्त का आग्रह देखा जा सकता है ।" यह तुकान्त गद्यशैली प्रारम्भ से ही सभी समवर्ती भाषाओं जैसे मैथिली, व्रज, खड़ीबोली आदि के आदिकालीन गद्य में दिखाई पड़ती है और इसकी चर्चा प्रारम्भ में की जा चुकी है इस प्रकार इस काल तक मरु- गुर्जर गद्य की व्याख्यात्मक बालावबोध शैली और अनुप्रासात्मक झंकारमयी ललित शैली का पर्याप्त विकास हो गया था ।
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