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________________ मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य सत्तरी कर्मग्रंथ एक गम्भीर रचना है। प्रस्तुत बालावबोध मात्र टव्वा है । इसके लेखक ऋषि कुंभ हो सकते हैं। 'नवतत्त्व बालावबोध भी इन्हीं की रचना मानी जाती है। एक नवतत्त्वबाला की चर्चा सोमसुन्दरसूरि के साथ की जा चुकी है । एक अन्य नवतत्त्वबाला० का उदाहरण श्री दिवेटियाजी ने अपने ग्रन्थ में दिया है जिसका लेखनकाल उन्होंने सं० १५८१ बताया है। हो सकता है कि यह रचना भी पार्श्वचन्द की हो । इसकी दो पंक्तियाँ उद्ध त हैं 'कितली गोली अजमा पीपली मिरी भारंगी सुठि प्रमुख द्रव्य करी जानी हुइ वात वाय फिडइ ।। उपाध्याय महिमासागर-आप अंचलगच्छीय जयकेशरिसूरि के शिष्य थे । आपने 'षडावश्यकविवरणसंक्षेपार्थ' लिखा है। जयकेशरिसूरि का समय सं० १४९४ से सं० १५४२ तक माना जाता है अतः आपके शिष्य महिमासागर की प्रस्तुत रचना १६वीं शताब्दी में ही किसी समय रची गयी होगी। महीरत्न-आपने १६वीं शताब्दी में किसी समय 'नवतत्त्वबालावबोध' लिखा । नवतत्त्व पर अनेक बालावबोध लिखे गये। अतः इनके लेखकों के सम्बन्ध में कहीं-कहीं भ्रम हो गया है। जब तक ये रचनायें प्रकाशित न हों और एक साथ उनके मूल पाठों का मिलान करना संभव न हो जाय तब तक इनके सम्बन्ध में निश्चित विवरण दे पाना कठिन है। पावचन्द्र -आप बृहत्तपा नागोरी तपागच्छ के साधु साधुरत्न के शिष्य थे। आप मरुगुर्जर गद्य एवं पद्य साहित्य के महान् स्रष्टा हो गये हैं । आपने धर्म की बड़ी प्रभावना की और आपके नाम पर एक गच्छ चल पड़ा। आपके सम्बन्ध में विवरण एवं काव्यसाहित्य का परिचय काव्यखण्ड में दिया जा चुका है । गद्यसाहित्य के अन्तर्गत भी आपने प्रभूत रचनायें की हैं, उनमें आचारांग बाला०, दशवैकालिकसूत्र बाला०, औपपातिकसूत्र बाला०, सूत्रकृतांग बाला०, साधुप्रतिक्रमणसूत्र बाला०, रायपसेणीसूत्र बाला०, नवतत्त्व बाला०, प्रश्नव्याकरणसूत्र बाला०, भाषा ना ४२ भेदनो बाला०, जंबूचरितबाला०, तंदुलबेयालीयपयन्ना बाला०, चउशरण प्रकीर्णक बाला० के अलावा प्रतिमा, सामाचारी और पाखी पर चर्चा तथा लोका १. देसाई--जैन गुर्जर कवि-भाग ३, पृ० १७५७-१५९२ २. वही ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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