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________________ ६०२ मरुगु-र्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रायल एसियाटिक सोसाइटी, लंदन से प्रकाशित हो चुकी है । नन्नसूरि के शिष्य गुणवर्द्धन द्वारा लिखित इसकी प्रति ब्रिटिशम्यूजियम में सुरक्षित है । डॉ० टी० एन० देव ने इसका उपयोग अपनी पुस्तक ' में किया है । श्रीसूरि के संबन्ध में विवरण पद्यखंड में दिया जा चुका है । उपदेशमाला बालावबोध के प्रारम्भ में नन्नसूरि ने लिखा है 'जिनवरेन्द्र तीर्थङ्कर नमस्करी नै हउं गुरु ने उपदेशु इ उपदेश तणि श्रेणि कहिसु । जिनवरेन्द्र किसिया छइ । इंद्र अनइ नरेन्द्र राजा ने पूजित छइ । वलि किसिया छई । त्रिभुवन ना गुरु छइ । रचना के अन्त की कुछ पंक्तिया इस प्रकार हैं: "जे मई अजाणतइ हूतइं । अक्षर मात्राइं उछउं कहिऊं हुइ । वीतरागना मुंह थकी नीकली वाणी । श्रुत देवता ते माहजं सहूवमड ।" इस भाषा में गुर्जर तत्व की प्रधानता है किन्तु भाषा मरुगुर्जर ही है । आपका विहार दूर-दूर तक होता रहता था अतः आपको भाषा पूर्व प्रचलित मरुगुर्जर से कथमपि भिन्न नहीं है । आपका जन्म सिरोही राज्य के हमीरपुर नामक स्थान में हुआ था और प्रायः नागौर, जोधपुर आदि राजस्थानी नगरों और अंचलों में आप अधिक विहार करते थे, अतः आपकी भाषा में राजस्थानी का विशेष प्रभाव स्वाभाविक ही है । आपके शिष्यों की संख्या काफी थी जिनमें से कुछ सुलेखक भी थे । · आपके किसी शिष्य ने 'सत्तरीकर्मग्रंथ बालावबोध' लिखा है । इसके प्रारम्भ की पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं 'गणहर पाय नमेयं, समरी गुरु पासचंद सूरिंद सत्तरि कम्म विचारं, कहियं रिषि कुंभ सुपसारं '5 1. A Study of the Gujarati Language in 16th century. २. देसाई - जैन गुर्जर कवि - भाग ३, पृ० १५७७-९२ ३. वही ४. आप हमीरपुर निवासी पोरवाड श्री वेलगसाह के पुत्र थे । आपकी माता का नाम विमला देव था । आपका जन्म सं० १५३७ में हुआ था। आपको २८ वर्ष की आयु में आचार्य पद प्राप्त हुआ । ५. एन० वी० दिवेटिया - गुजराती भाषा और साहित्य पृ० ४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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