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मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य जयचन्दसूरि-आप तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य श्री रत्नशेखरसूरि के प्रशिष्य और श्रीलक्ष्मीसागरसूरि के शिष्य थे। आपने सं० १५१८ में 'चउसरण अध्ययन बालावबोध' लिखा। कर्णपुर ग्राम में तिलक कल्याण
गणि द्वारा लिखित इसकी प्रतिलिपि जैसलमेर भद्रसूरि ज्ञानभण्डार में (सुरक्षित है।
जयवल्लभ-आपके काव्य साहित्य का परिचय पद्यखण्ड में दिया जा चुका है । गद्य में भी आपकी एक रचना की सूचना मिलती है। आपने सं० १५३० से पूर्व ही 'शीलोपदेशमाला बालावबोध' लिखा होगा क्योंकि ज्ञानधीरगणि द्वारा लिखित इसकी इसी संवत् की प्रतिलिपिप त्तन ज्ञानभण्डार में उपलब्ध है।
जिनसूरि--आपतपागच्छीय आचार्य साधुभूषण के शिष्य थे। साधुभूषण सुप्रसिद्ध आचार्य सोमसुन्दरसूरि की परम्परा में विशालराज के शिष्य थे। आपने १६वीं शताब्दी के प्रारम्भिक चरण में ही 'गौतमपृच्छा बालावबोध' लिखा, जिसकी अन्तिम पंक्तियाँ निम्नलिखित है :
'श्रीसोमसुन्दराचार्य मुनिसुन्दर वाग्सुधां, पीत्वा विशालराजेन्द्र सुधाभूषण से विना, श्री गौतमपृच्छाया बालावबोध उसमः लिखितो मुनिविजय गणिनां हर्षपूरेण भावतः
लिखितो जिनसूरेण हर्षपूरेण भावत :।। विशालराज कृत 'गौतमपृच्छा बालावबोध' का भी उल्लेख मिलता है । शायद यह एक ही बालावबोध हो जिसे विशालराज ने प्रारम्भ किया हो और जिनसूरि ने पूर्ण किया हो । इसकी अन्तिम पंक्तियों से मुनिविजय और जिनसूरि दोनों इसके लेखक मालूम पड़ते हैं । बहुत कुछ संम्भव है कि गौतमपृच्छा के ये दोनों संयुक्त लेखक रहे हों।
धर्मदेवगणि-आप कीर्तिरत्न के शिष्य श्रीक्षान्तिरत्न के शिष्य थे। आपने सं० १५१५ में 'षष्टिशतक बालावबोध' लिखा। यह बालावबोध तपोरत्नकृत षष्टिशतक की टीका पर आधारित है । इनके सम्बन्ध में विवरण पद्यखंड में दिया जा चुका है।
नन्नसूरि-आप कोरंटगच्छ के सावदेवसूरि के शिष्य थे। आपने सं० १५४३ में खंभात नगर में 'उपदेशमाला बालावबोध' लिखा। यह रचना १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवि-भाग ३, खंड १, पृ० १५८५ २. वही पृ० १५७९
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