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________________ ५९६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास डॉ० हरीश पुरानी राजस्थानी बताते हैं। दूसरे विद्वान् इसे जूनी गुजराती कहते हैं क्योंकि इसमें क्रियान्त 'छइ' शब्द गुजराती 'छे' का पूर्ववर्ती प्रतीत होता है । वस्तुतः यह मरुगुर्जर भाषा है, जिसमें राजस्थानी और गुजराती के प्राचीन प्रयोग और शब्द समूह सम्मिलित हैं, इसकी भाषा का जो उदाहरण आगे दिया गया है उससे उक्त कथन प्रमाणित होता है 'महाराजाधिराज श्री कान्हड़दे सभा पूरी बइठउ छइ। सिंहासनि पाउ परठिउ छइ । मेघवना उलच बाँध्या छइ । परीयउ ढली छइ। केतकीनां गंध गहगहीया छइ । सौरभंना सोउ सांचरिया छइ । सभा मांहि सेरी मेल्हाणी छइ। मुनिसुन्दर सूरि-आप तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य सोमसुन्दरसूरि के शिष्य थे। आपने योगशास्त्र-चतुर्थ प्रकाश पर बालावबोध लिखा है। आपके एक अज्ञात शिष्य ने 'कल्याणमन्दिर बालावबोध, लिखा है। यह रचना १५ वीं शताब्दी की है जिसकी हस्तप्रति संघभण्डार, पाटण से प्राप्त हुई है । ये रचनायें अप्रकाशित हैं । मुनि जी के एक अन्य शिष्य विशालराज ने भी गद्य लिखा है। किन्तु इन रचनाओं के नमूने नहीं प्राप्त हो सके हैं अतः उद्धरण नहीं दिया जा सका। मेरुतुंगसूरि-आपका जन्म सं० १४०३, दीक्षा सं० १४१८, आचार्य पद सं० १४२९, गच्छनायक पद सं० १४४६ और स्वर्गवास सं. १४७१ में हुआ। आप महेन्द्रप्रभ सूरि के शिष्य और प्रसिद्ध विद्वान् जयशेखर के गुरुभाई थे। आपने 'व्याकरणचतष्क बालावबोध' और 'तद्धितबालावबोध' नामक दो गद्य रचनायें की हैं। ये दोनों रचनायें भाषा-शिक्षा और व्याकरण से सम्बन्धित हैं। इनकी प्रतियाँ वखत जी शेरी भण्डार, पाटण से उपलब्ध हुई हैं। ये रचनायें भी संभवतः अप्रकाशित हैं अतः इनकी गद्य शैली के नमूने नहीं प्राप्त हो सके । साधुरत्नसूरि-आप तपागच्छीय देवसुन्दरसूरि के शिष्य थे। आपने सं० १४५६ के आसपास 'नवतत्त्वविवरणबालावबोध' लिखा। देवसुन्दर सूरि के कई शिष्य बड़े विद्वान् थे जैसे ज्ञानसागर, कुलमण्डन, गुणरत्न और सोमसुन्दर । साधुरत्नसूरि इन विद्वानों के गुरुभाई तथा स्वयं उच्चकोटि के विद्वान् तथा सुलेखक थे । आपने सं० १४५६ में यतिगीतकल्प पर वृत्ति लिखी थी । नवतत्त्व पर आपने जो अवचूरी लिखी है उसके प्रतिलिपिकार ने सोमसुन्दर का सादर स्मरण किया है। १. डॉ. हरीश--आदि कालीन हिन्दी साहित्य शोध प ० ३०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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