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मरु-गुजर जैन गद्य साहित्य
५९७ सोमसुन्दरसूरि-पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध को मरुगुर्जर साहित्येतिहास में सोमसुन्दर युग कहा गया है। सोमसुन्दरसूरि इस काल के निस्संदेह सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार थे। आप तपागच्छ के ५० वें पट्टधर थे। आ० जयानन्द सूरि आपके दीक्षागुरु थे। आपका जन्म सं० १४३० और दीक्षा सं० १४३७ में हुई। आपको सूरिपद सं० १४५७ में प्राप्त हुआ। आपका जीवनचरित 'सोमसौभाग्यकाव्य' में वर्णित है । आपने संस्कृत में भाष्यत्रयचूर्णि, कल्याणकस्तव, रत्नकोष, नवस्तवी आदि लिखा। आपकी रचना 'नेमिनाथनवरसफागु' मरुगुर्जर, प्राकृत और संस्कृत मिश्र भाषा की प्रसिद्ध काव्यकृति है । इनके काव्यों का विवरण यथास्थान दिया गया है ।
मरुगुर्जर गद्य में आपने उपदेशमाला बाला० सं० १४८५, योगशास्त्र बाला०, षडावश्यक बाला०, नवतत्त्व बाला० और षष्टीशतक बाला० सं० १४९६ में लिखा । आपकी कुछ गद्य कृतियों का संकलन प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ में पृ० ६७ से १२६ तक किया गया है। इनके अतिरिक्त आपने भक्तामरस्तोत्र बाला०, पयंताराधना-आराधना पताका बाला०, विचार ग्रंथ बाला० आदि भी लिखा है । आपका लेखन काल सं० १४५७ से सं० १४९९ तक निर्धारित है। आपकी गद्य रचनाओं के कुछ उदाहरण आगे दिए जा रहे हैं। उपदेशमाला बाला० से सनत्कुमारकथा की कुछ पंक्तियाँ देखिये :
'सनत्कुमार चक्रवर्तिन रूप एकबार इंद्रि वखाणिउ । ते जोवा वि देव ब्राह्मणनां रूप करी आव्या । तेह रूप बखाणिउ । चक्रवर्ति गर्वि गयो। तेतलइं चक्रवर्तिनई शरीरि कर्म लगइ सात महारोग संक्रम्या। तिसिं ते ब्राह्मण रूप जोवा तेडया। सभामांहि विशेष आभरण शोमा करि चक्रवर्ति गर्विउ वइठउ छइ ।' ___ आगे योगशास्त्र बाला. की रोहीणेयचोर कथा से कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :
'राजगृह नगरि, श्रेणिक राजा, अभयकुमारमन्त्रीश्वर, तिसिइ वैभार. गिरि पर्वति लोहखरउ चोर रहइ । राजगृह नगरनी सर्वलक्ष्मी स्त्रयादि चोरी आणइ । तेहनइ रोहिणी कलत्रनउ बेटउ रोहिणीउ इसिइ नामिई छ।” १. प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ-पृ० ६८ २. वही, पृ० १०७
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