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________________ मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य ५९५ इसी प्रसंग में लेखक ने क्षमा, अहिंसा आदि का महत्व भी बताया है। पृथ्वीचन्द्र के अयोध्या पहुँचने पर राजसभा की शोभा, राजसी शानशौकत, राजकन्या का रूप, गुण वर्णन करने के साथ चारणों द्वारा राजकुमारों की विरुदावली का पारंपरिक ढंग से बखान किया गया है। राजकुमारी ने पृथ्वीचन्द्र का वरण किया। आगे रानी का चौदह स्वप्न दर्शन, पुत्रोत्पत्ति आदि का वर्णन करने के बाद पंचम उल्लास में राजा द्वारा अपने पुत्र महीधर को राज्य सौंप कर स्वयं सम्यक्त्व ग्रहण करना वर्णित है। ___इनकी भाषा का नमूना नीचे दिया जा रहा है। पुण्य के सम्बन्ध में वे लिखते हैं, 'एह पुण्य ऊपरि राजाधिराज पृथ्वीचन्द्र तणलं कथा सम्बन्ध भणीयइ। सा ईणइं राजुप्रमाणि रत्नप्रभा पृथ्वीपीठि असंख्याता द्वीप समुद्र वर्तई । तीह माहि पहिलउ जम्बू द्वीप लक्षयोजन प्रमाण जाणियउ।' आगे मरहट्ठ देश का मनोरम वर्णन करता हुआ कवि कहता है 'तीह माहि वषाणीयइ मरहट्ट देश । जीणइ देसि ग्राम अत्यन्त अभिराम, भलानगर, जिहां न भागीयई कर । दुर्ग, जिस्यां हुई स्वर्ग, धान्य न नीपजइ सामान्य, आगर सोनारूपा तणा सागर । जेह देसमांहि नदी बहई, लोक सुख निर्वहई।" वर्षा वर्णन सम्बन्धी कुछ पंक्तियां देखिये 'हिव ते कुमदि, चढ़ी यौवनि भरि, परिवरी परिकरि, क्रीड़ा करइ नवीनवीपरि । इसिइं अवसरि आविउ आषाढ़ि इतर गुणि संबाढ़। काटइलइ लोह, पामतण उ निरोह घासि पाटि, पाणी वियाइ माटी। विस्तरउ वर्षा काल, जे पंथी तणउ काल, नाठउ दुकाल ।' इस गद्य शैली की तुकात्मकता और लयात्मकता अवलोकनीय है । अतः अलंकृत पद्याभास गद्य रचनाओं की परम्परा में एक श्रेष्ठ एवं प्राचीन रचना होने के कारण यह मरुगुर्जर के गद्य साहित्य की महत्त्वपूर्ण रचना है । पद्मनाभ-आपने मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी में अपनी प्रसिद्ध रचना 'कान्हडदे प्रबन्ध' १४वी १५वीं शताब्दी के बीच लिखी है। यह एक ऐतिहासिक महाकाव्य है । इसके पद्यों के बीच-बीच में गद्य खण्ड प्राप्त होते हैं । इसके वाक्य छोटे, भाषा प्रवाहमय एवं पैनी है । इसकी भाषा को १. प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ, पृ० १२७-१३४ २. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, पृ० ९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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