SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 611
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५९४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदिकालीन मरुगुर्जर गद्य साहित्य की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रचना है । इस तरह की रचनाओं का एक संग्रह अगरचन्द नाहटा ने नागरी प्रचारणी सभा द्वारा 'सभाशृङ्गार' नाम से प्रकाशित कराया था। उसमें उन्होंने इसके सम्बन्ध में लिखा है "मेरी जानकारी में इतना आलंकारिक साहित्यिक गद्य इतनी प्राचीन किसी प्रान्तीय भाषा में नहीं है।' १५ वीं शताब्दी में तुकान्त साहित्यिक गद्य रचनायें कई मिलती हैं। निस्संदेह यह उनमें श्रेष्ठ है । चमत्कारिक वर्णनों के कारण रचयिता ने इसका अपरनाम 'वाग्विलास' रखा है। इसकी गद्य शैली सानुप्रासिक, पद्याभास एवं तुकात्मक है । इसमें पृथ्वीचन्द्र की राजसभा, सेना, उनका पराक्रम, अयोध्या नगरी; पृथ्वीचन्द्र का समरकेतु से युद्ध, रत्नमञ्जरी का स्वयम्बर, वर्षा, वसन्त आदि ऋतुओं का यथासमय वर्णन बड़ा मनोहर है। ऐसा लगता है कि लेखक इसे ज्ञानकोष का रूप देना चाहता था। विषय की विविधता के साथ अलंकृत गद्य शैली का ऐसा मोहक संभार है कि प्रो० अनन्त राय रावल ने लिखा है कि 'माणिक्यसुन्दर सूरि बाणभट्ट बनना चाहते थे'।' लेखक ने नाना समुद्रों, द्वीपों, देशों, प्रदेशों, नगरों, नाना रत्नों, आभूषणों, अस्त्रशस्त्रों और आयुधों तथा नाना प्रकार के हाथी, घोड़ों आदि का ब्योरेवार विस्तृत वर्णन किया है। . __कथा पांच उल्लासों में विभक्त है। यह अपने ढंग की अद्भुत पद्यानुकारी गद्य रचना है। यह रचना 'प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ' और प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह में प्रकाशित है। लेखक का नाम माणिक्यसूरि, माणिक्यचंद्रसूरि और माणिक्यसुन्दरसूरि भी मिलता है। प्रथम खण्ड में जम्बूद्वीप, भरतखण्ड, उसकी नदियों, पर्वतों, मरहट्ट देश और पाटण नगर का वर्णन है जहां ८४ प्रकार के चउहटा हैं जिनमें नाना जातियां रहती हैं। बाद में कोशल देश, अयोध्या नगरी और उसके राजा सोमदेव के प्रताप एवं ऐश्वर्य आदि का विशद वर्णन है । उनकी कन्या रत्नमञ्जरी ६४ कलाओं में निपुण थी। इसके रूप-गुण के वर्णन में लेखक ने अद्भुत कविकर्म का परिचय दिया है। द्वितीय उल्लास में पुराण, स्मति, कला-विज्ञान आदि का वर्णन किया है । रत्नमञ्जरी के स्वयम्वर में जाते हुए रास्ते में पृथ्वीचन्द्र का समरकेतु से युद्ध, उसकी भीषणता एवं नाना अस्त्र-शस्त्रों का प्रसंगतः वर्णन किया गया है। तृतीय उल्लास में अंगदेशवासी श्रीपति की कथा वर्णित है जिसे परिस्थितिवश लक्ष्मीपति का पुत्र होते हुए भी चौरकर्म करना पड़ा था। १. अनन्त राय रावल-गुजराती साहित्य पृ० ७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy