________________
५९२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सर्वस्व आदि हैं । आपने 'उपदेशचिन्तामणि' नामक प्रसिद्ध महाग्रन्थ संस्कृत में लिखा और स्वयं उसपर टीका भी लिखी। उपदेशमाला पर भी आपने अवचूरी लिखी थी । इस प्रकार आप १५वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के प्रसिद्ध जैनमुनि और प्रमुख साहित्यकार थे।
तरुणप्रभसूरि-मरुगुर्जर के आदिकालीन गद्यकारों में आपका नाम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । आपजिनचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर जिनकुशलसूरि के शिष्य थे। आपके विद्यागुरु यशःकीर्ति और राजेन्द्रचन्द्रसूरि थे । आपने सं० १४११ की दीपावली पर अणहिलपत्तन में षडावश्यक पर बालावबोध नामक बृहद् गद्यग्रंथ लिखा। 'प्राचीन गुजराती गद्यसंदर्भ' में सम्यक्त्व तथा श्रावकों के १२व्रतों पर दृष्टान्त स्वरूप छोटी-छोटी कई कथायें और श्रावकों के व्रत-अतिचार आदि से सम्बन्धित अन्य अनेक गद्य रचनायें आपकी लिखी हुई संकलित हैं । इनसे तत्कालिन लोक प्रचलित गद्यभाषा का अच्छा परिचय मिलता है। एक अवतरण उदाहरणाथ उद्ध त किया जा रहा है :'देवु सम्यक्त्व विषइ निश्चलु जाणी करि नरवर्मणि रायरहई प्रणमी करी साक्षात्कारि होई कहइ, महाराज ! धन्यु बउं जेह तूरहई सभामाहि बइठउ इन्द्र महाराजु सम्यक्त्व वणी स्तुति करइ।' इसड भणी आपणउ मउडु आपी करी आपणइ थानिक गयउ। नरवम्मु महाराजु सम्यक्त्व-मूल गृहिधम्मि चिरकालु प्रतिपाली करि पुत्र मित्रादिक सहितु दीक्षा ले करि सुगति पहुतउ ।'
आप राजस्थान, गुजरात के अलावा सुदूर सिन्ध आदि प्रदेशों तक विहार करते रहते थे, अतः आपकी भाषा में सरलता और व्यापकता है। षडावश्यक बालावबोध की रचना के पश्चात् बालावबोध का खूब प्रचलन हुआ और इनकी एक परम्परा चल पड़ी। षडावश्यक बालावबोध की भाषा में प्रवाह और प्रासादिकता के साथ ही 'उ'कारात्मक प्रवृत्ति भी दिखाई पड़ती है जो इसकी प्राचीनता का सूचक है। एक महत्वपूर्ण रचना होने के कारण इसका एक उद्धरण प्रस्तुत है :_ 'राजा अनइ महामात्युबे जड़ा अश्वापहार इतउ अटवी माहि गया। भूखिया हुआ । वणफल खाधां । नागरी आविया । राजा सूपकार तेडी करी कहइ, जि के भक्ष्य मैद संगवइति सणवाइ कर उ', सूपकारे कीधा।" १. प्राचीन गुजराती गद्य गन्दर्भ-पृ०४ २. श्री अगरचन्द नाहटा-राजस्थान जैन साहित्य प० २२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org