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________________ मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य ५९१ गंगाए धर्मु हो पाप जा । पृथ्वी वरति । मेह वरसि । आँखि देखि । नेहाल । आँखि देखत आछ । जीभ चाख । काने सुण । बोलं बोल।1 इसकी भाषा भी पूर्वी अपभ्रंश का परवर्ती विकास प्रतीत होती है क्योंकि इसका आधार 'उक्तिव्यक्ति' है जो 'कोसली' की रचना मानी जाती है । श्रीजयशेखरसूरि-मरुगुर्जर अथवा आदिकालीन हिन्दी जैन-काव्यकृतियों में 'त्रिभुवनदीपकप्रबन्ध' एक उत्तम प्रबन्ध रचना है। आपने संस्कृत में प्रबोधचिन्तामणि नामक महाग्रन्थ लिखा था। त्रिभुवनदीपक प्रबन्ध उसी का लोकभाषा में किया गया रूपान्तरण है, इसीलिए इसका अपरनाम 'प्रबोधचिन्तामणिचौपइ' प्रसिद्ध है। यह जैनधर्म अभ्युदय ग्रन्थमाला के अन्तर्गत श्रीलालचन्द भगवान गाँधी द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित रचना है। यह सं० १४७० में लिखी गई थी। इसके पद्य के बीच-बीच में गद्यखण्डों का भी प्रयोग किया गया है। इसकी गद्यभाषा प्रौढ़ एवं प्रसादगुणसम्पन्न है। अतः यह मरुगूर्जर गद्य के विकासपरम्परा की एक महत्त्वपर्ण कड़ी है । इसकी भाषा का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए कुछ पंक्तियां अवतरित की जा रही हैं : 'जे जिकाई प्रार्थइ तेइ रई हइ ते वस्तुनु दान अनिवार, तत्वकथा भव द्रवद्रइं धज अलंब लहलहइं। . साधुतणा हृदय गहगहइ दुष्ट दोषी तणउ, · दाटण पामिउ पुण्य रंग पाणउ ।” इसकी भाषा को डा० हरीश ने मरुगुर्जर का उत्तम उदाहरण बताया है। इनकी अन्य गद्यरचना 'श्रावकबृहद्दत्तिचार' भी उल्लेखनीय है। यह श्रावकों के उपदेशार्थ सरल गद्य में लिखी गई है। पद्य भाग के अन्तर्गत आपका परिचय दिया गया है। आप श्री महेन्द्रप्रभसूरि के शिष्य एवं मेरुतुंगसूरि के गुरुभाई थे। आपकी प्रसिद्ध काव्यकृति 'नेमिनाथफागु' का वर्णन किया जा चुका है। इसके अलावा आपने मस. गर्जर में 'धम्मिलचरित्त' और 'जैनकुमारसंभव' नामक प्रसिद्ध काव्यग्रन्थ रचे हैं । आप संस्कृत के धुरन्धर विद्वान् थे और आपने संस्कृत में विपुल साहित्य लिखा है जिनमें कई द्वात्रिंशिकायें, आत्मप्रबोधकुलक और धर्म१. हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास - खण्ड ३, पृ० ४३६ ( नागरी प्रचारणी सभा-काशी से प्रकाशित ) २. डॉ० हरीश-'आदिकालीन हिन्दी साहित्य शोध'-१० ४७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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