________________
मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य
५८७ शैली का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए 'सर्वतीर्थ नमस्कार स्तवन' की कुछ पंक्तियाँ अवतरित की जा रही हैं :_ 'पहिलङ त्रिकालु अतीत अनागत वर्तमान बहत्तरि तीर्थङ्कर सर्वपाप• क्षयंकर हउं नमस्करउं। तदनंतर पांचे भरते पांच ऐरवते पांच महाविदेहे सत्तरिसउ उत्कृष्ट कालि विहरमाण हउँ नमस्कारउं ।'
इन रचनाओं की गद्य भाषा में भी तत्सम शब्दों का प्रयोग, तुकात्मक प्रवृत्ति और लम्बे वाक्यों की संरचना द्रष्टव्य है।
'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' में इन रचनाओं के साथ सं० १३४० की लिखित 'अतिचार' नामक एक विशेष रचना भी संकलित है। यह १४वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध की गद्यभाषा का नमूना प्रस्तुत करती है। अतः इसकी भी कुछ पंक्तियाँ उद्ध त की जा रही हैं :____ 'सातमइ भोगोपभोग व्रति संचित द्रव्य विगइ खासहाइ पावही पानि, कोकलि बइसणि आखणि समणि न्हाणुअइ अंगोहलि फलिफूलि भोजनि आच्छादतिज कोइ अतिचारु हुयउ पक्ष दिवस मांहि ।। __ इसमें द्रव्य, पक्ष, दिवस जैसे तत्सम शब्दों के साथ अपभ्रंश प्रभावित वइसणि, आसणि, सयणि आदि 'ण' कार युक्त शब्दावली का प्रयोग इसे संक्रमणकालीन भाषा का उत्तम नमना सिद्ध करते हैं। इन रचनाओं में बालशिक्षा के लेखक श्री संग्रामसिंह को छोड़कर अन्य रचनाओं के लेखकों का नाम, परिचय आदि ज्ञात नहीं है।
१४वीं शताब्दी की दो गद्य रचनाओं-(१) 'धनपालकथा', (२) 'तत्त्वविचार प्रकरण' को श्री अगरचन्द नाहटा ने 'राजस्थान भारती' में प्रकाशित कराया है। धनपाल की प्रसिद्ध कृति 'तिलकमंजरी' किसी अग्निकाण्ड में भष्म हो गई थी, जिसे उन्होंने पुनः लिखा था। धनपालकथा में इसी घटना का वर्णन है। इसकी भाषा का उदाहरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है :
'उज्जयिनी नाम नगरी । तहिठे भोजदेव राजा । तीयहि तणय पंचइ सयह पंडितह मांहि मुख्यु धनपाल नामु पंडितु। तीयहि तणइ घरि अन्यदा कदाचित् साधु विहरण निमित्तु पइठा। १. 'सर्वतीर्थ नमस्कार स्तवन' प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ-सं० मुनि जिन
विजय पृ० २१६ २. अतिचार-'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' सं० ए० एन० जानी ५० ८७-८८ ३. अमरचन्द नाहटा-राजस्थान भारती-वर्ष ३, अंक २ पृ० ९३-९६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org