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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
१३वीं - १४वीं शती की गद्य रचनायें
'प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ' में सबसे प्राचीन गद्य रचना 'आराधना " है । इसकी ताड़पत्रीय प्रति सं० १३३० की लिखित है अतः यह रचना १३वीं शताब्दी की अवश्य होगी। प्राचीनतम नमूने के रूप में इसका ऐतिहासिक महत्त्व निर्विवाद है । इसकी भाषा का एक नमूना दिया जा रहा है :
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'अतीत निंदउ वर्तमान संवरहु अनागतु पच्चरवउ | पंच परमेष्ठि नमस्कार जिनशासन सारु चतुर्दश पूर्व समुद्धारु संपादित सकल कल्याण संभारु विहित दुरितापहारु क्षुद्रोपद्रव पर्वत वज्रप्रहारु लीला दलितसंसारु सु तुम्हि अनुसरहु जिणि कारणि चतुर्दश पूर्वधर चतुर्दश पूर्व संबंधिउ ध्यानु परित्यजउ ।' यह वाक्य अभी भी अपूर्ण है । इस गद्य की यह विशेषता है कि वाक्य लम्बे हैं; वाक्यों के बीच में अन्तर्तुकात्मक शब्दावली का प्रयोग मिलता है । संस्कृत के तत्सम शब्दों का पर्याप्त प्रयोग भी ध्यातव्य है जैसे अतीत, वर्तमान, अनागत, चतुर्दश, संपादित, सकल, विहित, दुरित, क्षुद्र, पर्वत, प्रहार इत्यादि । संस्कृत की सन्धियों और सामासिक पदावली का प्रयोग भी इसकी महत्वपूर्ण विशेषतायें हैं । 'सम्पादित सकल कल्याणु सम्भार' और 'क्षुद्रोपद्रवं पर्वत वज्र प्रहारु' इत्यादि सामासिक पदावली के नमूने हैं ।
श्री संग्रामसिंह - आपने भाषाशिक्षा ( व्याकरण ) को सुगम ढंग से समझाने के लिए सं० १३३६ में 'बालशिक्षा' नामक एक पुस्तिका लिखी जो 'प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ' में संकलित है । इसे दो अधिकारों ( भागों) में बाँटा गया है । प्रथम अधिकार में व्याकरण, कर्त्ता, क्रिया, कारक आदि को समझाया गया है और दूसरे अधिकार में ओक्तिक पदों का संग्रह किया गया है । अतः यह मरुगुर्जर के भाषा - स्वरूप के अध्ययनार्थ महत्त्वपूर्ण रचना है ।
प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ में संग्रहीत अन्त रचनायें - 'नवकार व्याख्यानम्' (सं० १३५८); सर्वतीर्थ नमस्कार स्तवन ( सं० १३५९ ) और 'अतिचार' (सं० १३६९) १४वीं शताब्दी के गद्य का पुष्ट प्रमाण प्रस्तुत करती हैं । इनमें प्रायः एक ही प्रकार की गद्यशैली प्रयुक्त है । इनकी भाषा१. आराधना - प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ - सम्पादक मुनि जिनविजय,
पृ
२१८-१९
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