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________________ ५८५ मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य जैन साहित्यकार सामान्यतया साधक और सन्त थे। साहित्य इनके लिए विशुद्ध कला की वस्तु कभी नहीं रही। वह धार्मिक आचार की पवित्रता और साधना का साधन रहा है। यही कारण है कि अभिव्यक्ति की सरलता, सुबोधता और सहजता का यहाँ सदैव सर्वोपरि ध्यान रखा गया है। उस समय मरुगुर्जर बोलचाल और व्यवहार की प्रचलित भाषा थी अतः जैन साहित्यकारों ने इसी भाषा में अपनी भावना और विचारणा को सहज ढंग से व्यक्त किया। ___मरुगुर्जर जैन गद्य साहित्य के भी स्थलरूप से दो भाग किए जा सकते हैं (१) मौलिक गद्य और (२) टीका, टव्वा, बालावबोध और अनुवाद आदि । मौलिक गद्य धार्मिक, ऐतिहासिक और कलात्मक आदि नाना शीर्षकों में बाटा जा सकता है। धार्मिक गद्य के अन्तर्गत तत्त्वनिरूपण सम्बन्धी रचनायें और कलात्मक कृतियाँ अधिक मिलती हैं। ऐतिहासिक गद्य गुर्वावली, पट्टावली, वंशावली आदि रूपों में लिखा हुआ मिलता है। इनमें इतिहास की रक्षा का पूरा प्रयत्न किया गया है। ___ आचार्यों की प्रशस्ति में भी ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा नहीं की गई है। कलात्मक गद्य वचनिका, दवावैत, वात, सिलोका, संस्मरण आदि नाना रूपों में उपलब्ध होता है। अनुप्रासात्मक झंकारमयी शैली और अन्तर्तुकात्मकता, अलंकृति और कलात्मकता इनकी महत्वपूर्ण विशेषतायें हैं। प्रारम्भ में आगमों में निहित गढ़ दार्शनिक तत्त्वों को जनोपयोगी बनाने की दष्टि से नियूंक्तियाँ और भाष्य पद्यबद्ध शैली में लिखे गये और इनपर गद्यमें चूर्णियाँ लिखी गईं किन्तु तब साहित्यभाषा का स्थान प्राकृत या संस्कृत को प्राप्त था । आगे चलकर टीका युग आया और नियुक्तियों, भाष्यों और आगमों पर टीकायें, संस्कृत से प्रारम्भ करके बाद में मरुगुर्जर में लिखी जाने लगीं। इनके दो विशेष रूप प्रचलित हुए (१) टव्वा और (२) बालावबोध । टव्वा संक्षिप्त रूप है जिसमें शब्दों के अर्थ ऊपर-नीचे या बगल में लिख दिए जाते हैं परन्तु बालावबोध में व्याख्यात्मक समीक्षा का प्राचीन स्वरूप दिखाई पड़ता है। इन रचनाओं में निहित सिद्धान्त को कथा और उदाहरण-दृष्टान्त द्वारा इस प्रकार समझाया जाता था कि बालक जैसा अबोध भी उनके सार का बोध प्राप्त कर सके अतः इन्हें बालावबोध कहा गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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