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________________ ५८४ मरु-गुजर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दूसरी रचना 'तत्त्वविचारप्रकरण' की भी दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं : 'एउ संसारु असार । खणभंगरु, अणाइ चउ गइउ । अणोरु अपारु संसारु अणाइ जीव । अणेग अणादि कर्म संयोगि सुभासुभि कर्म अचेष्टित परिवे णिढिमा जीव पुणु नरक गति ।' इन रचनाओं की भाषा में 'अतिचार' के समान तत्सम शब्दों के प्रयोग के साथ ही अपभ्रश की 'उकार' बहुल प्रवृत्ति भी बनी हुई है। यह संक्रमणकालीन प्रवृत्ति १५वीं शताब्दी तक की जैन-अजैन मरुगुर्जर गद्य रचनाओं में प्रायः सर्वत्र पाई जाती है। __ श्री एन० वी० दिवेटिया ने अपनी पुस्तक में १३वीं-१४वीं शताब्दी की गद्य रचनाओं के कुछ उद्धरण दिए हैं। इनमें से प्रायः सभी 'प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ' में संकलित हैं, अतः उन्हें यहाँ दुहराने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु उन्होंने सं० १४४९ की एक जैनेतर रचना 'गणितसार' का जो उद्धरण दिया है, उसकी कुछ पंक्तियाँ अवतरित की जा रही हैं : 'शिवु भणीइ देवाधिदेव भट्टारकु महेश्वर किसु जु परमेश्वर कैलास सिषरु मंडनु पार्वती हृदयरमणु विश्वनाथ जिणि विश्व नीपजाविउं तसु नमस्कारु करीउ बालावबोधनार्थ बाल भणीइं अज्ञान तीह किहि अवबोध जाणिवा तणइ अथि आत्मीय यशोवृद्धयर्थ श्रेयस्करणार्थ श्रीधराचार्य गणि जु प्रकटीकतु ।" दिवेटिया जी का कथन है कि कुछ विद्वान् इस भाषा को प्राचीन गुजराती कहते हैं किन्तु ये गद्यखण्ड मात्र गुजराती के नहीं हैं बल्कि उस संक्रमणकालीन भाषा के हैं जिसे 'गुर्जर-अपभ्रंश' कहना चाहिये। श्री दिवेटिया जी के इस कथन से हम सहमत हैं कि ये गद्यखण्ड मात्र गुजराती के नहीं हैं बल्कि मरुगुर्जर के हैं क्योंकि उस समय तक गूजराती, राजस्थानी और पुरानी हिन्दी में कोई भेद नहीं था। 'गुर्जर-अपभ्रंश' नाम विवादास्पद हो सकता है किन्तु इस भाषा के लिए मरुगूर्जर नाम प्रायः सर्वमान्य हो चुका है और यही नाम इन गद्यखंडों की भाषा के लिए उचित है । १. अ० च० नाहटा-राजस्थान भारती वर्ष ३, अंक ३-४, पृ० ११८-१२० २. एन० वी० दिवेटिया-गुजराती लैंग्वेज एण्ड लिटरेचर, पृ० ४२ .3. I must refuse to recognise the language of the above extracts as Gujarati. I have already stated that it should be called Gurjara Apabhramsa. (N. B. Divatia-Gujarati Language and Literature Vol. II, Page 42 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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