SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति ४३ धनपाल तृतीय भी शायद दिगम्बर थे। आपने धनपाल द्वितीय कृत तिलकमंजरी पर आधारित 'तिलकमंजरीकथासार' नामक रचना की। आप १३ वीं शताब्दी के लेखक लगते हैं। इनके अतिरिक्त एक अन्य "धनपाल (चतुर्थ १५ वी ) का उल्लेख भी मिलता है जिन्होंने 'बाहुबलि चरित' नामक १८ सन्धि का चरित काव्य लिखा जिसमें प्रथम कामदेव बाहुबलि का चरित्र अंकित है। इसकी रचना चन्द्र गड नगर के राजा सारंग के मंत्री बासाहर की प्रेरणा से वैशाख सं० १४५५ में की गई है। इसमें कवि ने अपने से पूर्व के अनेक कवियों और उनकी कृतियों का सादर स्मरण किया है। घोर कवि-सं० १०७६ में आपने 'जंबूसामिचरिउ' लिखा। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। कवि के पिता का नाम देवदत्त था जो स्वयम् अच्छे कवि थे। कवि ने अपने पिता के सम्बन्ध में कहा है कि स्वयंभू और पुष्पदन्त के बाद अपभ्रंश के तीसरे महाकवि वे ही थे। अपभ्रंश काव्यों में सज्जन-दुर्जन के स्मरण की परिपाटी के अनुसार इसमें भी उनकी अभ्यर्थनाकदर्थना की गई है। जंबू स्वामी सइत्तउ नगरी के संताप्पिउ वणिक के पुत्र अरहदास के रूपवान पुत्र थे जिनके गर्भाधान काल में उनकी माता ने जंबू फलादि का स्वप्न देखा था अतः उनका नाम जंबू पड़ा था। जंबूकुमार की सुन्दरता पर नगर बधुयें आसक्त थीं किन्तु अन्ततः उन्हें विरक्ति हुई और निर्वाण प्राप्त किया। ___इसमें प्रसंगानुसार वेश्याओं के सौन्दर्य एवं उनके नाना भेदों का उल्लेख किया है। कवि ने इसे शृंगार-वीर महाकाव्य कहा है। इसमें शृंगार के वर्णनों की बहुलता भी है किन्तु डॉ० रामसिंह तोमर ने इसे शृंगार-वैराग्य कृति कहना अधिक समीचीन माना है। कवि ने ग्रन्थ की समाप्ति पर लिखा है 'इवीरे जंबू समाचारिए सिंगार य' महाकाव्वे महाकइ देवदत्त सुय वीर विरइय बारह अणुपेहाउ भावणाये विज्जुच्चरस्स सव्वह सिद्धि गमणं नाम एयारसमो संधी परिछेउ सम्मतो।" शृंगार सौन्दर्य का वर्णन करने वाले एक दोहे को भाषा के नमूने के लिए यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है : "जाणमि एक्कु जे विहि धड़इ सयतुविजगू सामण्णु । जि पुणु आयउ णिम्मविउ कोवि पचावइ अण्णु ॥" १. डॉ. रामसिंह तोमर 'अनेकान्त वर्ष ९ किरण १०' अपभ्रंश का एक शृंगार वीर काव्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy