SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (अर्थात् ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रह्मा ने सामान्य संसार की रचना की किन्तु इन सुन्दरियों को किसी अन्य ब्रह्मा ने बनाया है।) नयनन्दि - आप अपभ्रंश के उत्कृष्ट कवि और प्रकांड पंडित थे। इन्होंने 'सुदंसणचरिउ' की रचना वि० सं० ११०० में की। उस समय धारा नगरी में भोज राज्य करते थे। इनके गुरु माणिकनन्दी थे जिनका इन्होंने संधि की पुष्पिका में बराबर नमन किया है। ग्रन्थारम्भ में ही आपने लिखा है कि जिनस्तवन के कारण मुझ-अकुशल कवि का काव्य भी सुकवित्व से अलंकृत होगा। मगध के राजा श्रेणिक के पूछने पर गौतम गणधर सुदर्शनचरित कहते हैं। चम्पापुरी में ऋषभदास नामक श्रेष्ठी और उनकी पत्नी अरुहदासी रहते थे । इस श्रेष्ठी का एक मित्र गोपाल दुर्भाग्यवश गंगा में डूब गया। ऋषभ की पत्नी अरुह ने स्वप्न देखा कि वही गोपाल मरते समय पंच नमस्कार करने के परिणामस्वरूप ऋषभदास श्रेष्ठी के पुत्र के रूप में जन्म लिया है। उसका नाम सुदर्शन पड़ा है। वही सुदर्शन पैदा हुआ। वह बड़ा सुन्दर, आचारवान् और दृढ़वती हुआ। उसी की कथा इस चरिउ में नयनन्दि ने कही है। नयनन्दि ने बाण और सुबन्धु की क्लिष्ट और अलंकृत श्लिष्ट गद्य-शैली का पद्य में सफल प्रयोग किया है । एक नमूना देखिये : "जो अहिणव मेहुविणउ जउमउ, जो सामु वि अदोसु उज्झिययउ । सूरु वि णउ कुवलय संतावणु, वज्जिय रयणियरु विणउ विहीसणु ॥" अर्थात् जो अभिनव मेघ होते हुए भी जलमय न था, उसमें जल (मेघा) था किन्तु वह मेघ की तरह जड़ न था । जो चन्द्र होता हुआ भी कुवलय का सन्तापी न था, जो रजनीचरों से रहित था किन्तु विभीषण नहीं था। नयनन्दि की अलंकृत शैली से आ० केशव दास की भाषा में साम्य ढूढ़ा जा सकता है। इस ग्रन्थ के अलावा नयनन्दि की एक अन्य रचना 'सकलविधिनिधान' का भी उल्लेख मिलता है। किन्तु वह देखने में नहीं आई। कवि की प्रसिद्धि का आधार सुदंसणचरिउ ही है जो अपभ्रंश का उत्कृष्ट काव्य है और कवि ने इसे पूर्णरूपेण दोषमुक्त बताया है। इसमें पचासों तरह के वर्णिक एवं मात्रिक छंदों का प्रयोग किया गया है। अलंकारों का चमत्कार तो अद्भुत है। मुनि कनकामर--( १२ वीं शताब्दी) आपने 'करकंडचरिउ' नामक १० सन्धियों का प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा है जिसके प्रारम्भ में उन्होंने अपने गुरु पंडित मंगलदेव का स्मरण-वंदन किया है। आप ब्राह्मण कुल के चन्द्र ऋषि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy