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________________ ५८२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास फारसी की अनुप्रासात्मक गद्य शैली का प्रभाव बताते हैं, किन्तु अन्य मनीषी इन्हें प्राकृत की कथा-आख्यायिकाओं की अलंकृत गद्य शैली का परवर्ती विकास समझना अधिक युक्तिसंगत मानते हैं। ये वचनिकायें इतनी लोकप्रिय हुई कि बाद में स्वतन्त्र रूप से अनेकानेक वचनिकायें लिखी गयीं जिनमें अचलदासखींची री वचनिका, सिवदासरी कही तथा वचनिका 'राठौर रतनसिंहजी री महेसदसौत री खिरियाजगा री कही' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। पहली वचनिका सं० १४७० के आसपास की लिखी गई है। इसमें गांगुराणा के शासक अचलदास और माण्डू के बादशाह के युद्ध का ओजस्वी वर्णन चारण सिवदास ने किया है। अपने आश्रयदाता की अतिशयोक्तिपूर्ण विरुदावली का वर्णन करने में तल्लीन होने के कारण कवि का ध्यान ऐतिहासिक तथ्यों पर नहीं टिक सका है। अतः यह भाषा व काव्यत्व की दृष्टि से जितनी महत्वपूर्ण कृति है, उतनी इतिहास की दृष्टि से नहीं।' इसकी भाषा का नमूना प्रस्तुत किया जा रहा है :___ 'इसी नही ही ठाकुर । इसी कीजै। गले सत का अवांसा सौ लोहडो करती जाइजै। जितरा जितरा दग दीजे तितरा अश्वमेध ज्यांग का फल लीजै । इणिर विधि जे जीव निवेदी जे ते सूरिज मंडल भेदी जै। तितहै बात कहता वार लाजै ।' दूसरी वचनिका में रत्नसिंह की कीर्ति का वर्णन किया गया है । उन्होंने अपने स्वामी यशवन्तसिंह के लिए औरंगजेब से लड़ते-लड़ते वीरतापूर्वक अपना प्राण न्यौछावर कर दिया था। यह वचनिका हमारी कालसीमा के बाद की है अतः इसका उद्धरण यहाँ आवश्यक नहीं है । दवावैत-ये गद्य और पद्य दोनों रूपों में लिखे जाते हैं। इनके भी दो भेद किए जाते हैं (१) गदबन्ध और (२) शुद्धबन्ध । गदबन्ध दवावैत में तुकान्त खण्डवाले गद्य होते हैं। जैनों और चारणों दोनों ने दवावैत लिखे हैं । जिनसुखसूरि और जिनलाभसूरि कृत दवावैत गद्य की उत्तम रचनायें कही जाती हैं। चारणों द्वारा लिखित लगभग २५ दवावतों का उल्लेख श्री 1. Correctness of the accounts is much disturbed by poetical exag geration and fiction"-Dr. L. P. Tessitory [ A Descriptive Catalogue of Bardic and historical manuscripts. Sec. I Part II Page 41.] २. डॉ० मोतीलाल मेनोरिया-राजस्थानी भाषा और उसका साहित्य पृ० ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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