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मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य
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में किया है । इनमें श्री अ० च० नाहटा परवर्ती हैं । कुछ
टोले ।
सौभाग्य सिंह शेखावत ने शोधपत्रिका वर्ष १३ अंक ४ से अधिकतर रचनायें १५वीं शताब्दी के बाद की हैं। ने भी दवावैतों के कई उदाहरण दिए हैं, किन्तु वे भी पंक्तियाँ नमूने के तौर पर अवतरित की जा रही हैं :'हाथियों के हलके खंभू ठाणा तं खोले । ऐरावत के साथी भद्र जाति के अत देहु के दिग्गज विंध्याचल के रंगरंग चित्रे सुडा उँडू के झूल की जलूसे वीर घंटुके वात- डॉ टेसीटोरी द्वारा संग्रहीत 'फुटकर ख्यात वात तथा गीत' में बात की परिभाषा इस प्रकार दी गई है 'जिण खिसा मै कम दराजी सो खिसो बात कहावे ।" अर्थात् इसमें कथातत्त्व की प्रधानता होती है । यह कहानी या आख्यायिका जैसी गद्य विधा है । इसमें 'अनंतराय सांखला री बात' सं० १३२५ की महत्वपूर्ण रचना है । १५वीं शताब्दी की बातों में ढाढी बादर कृत 'निसाणी बीरभाण री बात' और प्रतापसिंह कृत 'चंदकुंवर रा वात' विशेष उल्लेखनीय हैं । अद्यावधि वात साहित्य की सैकड़ों रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं ।
सुजाव ।
बणाव । खणके । '
בין
ख्यात - चारणों ने अपने आश्रयदाताओं के यश- पौरुष और पराक्रम आदि का खूब बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया, इस प्रकार जिन रचनाओं में राजाओं की ख्याति का वर्णन किया गया है उन्हें ख्यात कहते हैं । उस समय राजाओं द्वारा अपनी विरुदावली लिखवाने की प्रथा चल पड़ी थी अतः ऐसी रचनायें भी बड़ी संख्या में लिखी गईं। इनकी परम्परा १६वीं शताब्दी के पहले भी मिलती है किन्तु इसमें मनगढन्त और कपोलकल्पित बातें अत्यधिक पाई जाती हैं अतः इनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है । इनमें 'सिसोदिया री ख्यात' राठौड़ाँ री ख्यात, कछवाहा री ख्यात आदि विशेष प्रसिद्ध हैं । ख्यातों में सर्वप्रसिद्ध रचना है ' मुहणोत नैणसी री ख्यात' जिसका समय सं० १७२२ है अतः इसका विवरण यथास्थान दिया जायेगा ।
ख्ता के समान ही कुछ अन्य गद्य रचनायें भी हैं जैसे पीढ़ी, वंशावली, विगत आदि । पीढ़ी ओर वंशावली में राजवंशों की वंशावली और उनके वीरता की अतिशयोक्तिपूर्ण व्यञ्जना मिलती है । इनमें यत्र-तत्र ललित पद्य
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१. नाहटा - प्राचीन काव्यों की रूप परम्परा, पृ० ११७
२. डॉ० रामकुमार वर्मा - हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ० १०७
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