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________________ मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य ५८१ राजस्थानी या मारवाड़ी में अपभ्रंश के मिश्रण से किया गया था । इसमें वीररस प्रधान कविता और गद्य लिखा जाता था । मधुर कविता के लिए पूर्वी राजस्थानी और व्रजभाषा के संयोग से एक अन्य भाषा शैली विकसित हुई थी जिसे पिंगल कहते थे । म गुर्जर में लिखित जैनेतर गद्य रचनाओं के प्राचीनतम नमूने ताम्रपत्रों, शिलालेखों और प्राचीन बहीखातों में मिलते हैं । श्री मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या ने इस प्रकार के कुछ पट्ट - परवाने काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा काफी पहले प्रकाशित कराये थे और उन्हें पृथ्वीराज चौहान के समय का बताया था किन्तु रायबहादुर गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने उन्हें जाली सिद्ध कर दिया । अतः विवादास्पद होने के कारण उनकी चर्चा यहीं छोड़ दी जाती है। पट्ट े - परवानों के अलावा डिंगल का गद्य साहित्य अनेक साहित्य विधाओं जैसे वचनिका, बात, ख्यात, दवावेत, विगत, पीढ़ी, वंशावली और सिलोका आदि रूपों में मिलता है । इनका विवरण आगे दिया जा रहा है । वचनिका - हिन्दी भाषी क्षेत्र के पश्चिम से लेकर पूरब तक की रचनाओं अर्थात् पृथ्वीराजरासो और कीर्तिलता आदि सभी प्राचीन कृतियों में वचनिका के उदाहरण मिलते हैं । डा० टेसीटोरी ने वचनिका की पहचान बताते हुए इसे तुकात्मक गद्य कहा है । आचार्य बामन ने भी ऐसी रचनाओं को वृत्तिगन्धि की कोटि में रखा था अर्थात् जिसमें पद्य का आभास हो । इन रचनाओं में अन्तर्तुक का प्रयत्न प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है । यह एक वचनिका की निम्न पक्तियों से स्पष्ट होगा । "दिल्ली रा वाका उजेणे रा साका च्यारि जुग रहिसी कवि बातकहिसी ।" श्री अ० च० नाहटा ने इसे ठीक ही पद्यानुसारी गद्य कहा है । उन्होंने 'रघुनाथ-रूपक' नामक छन्दग्रन्थ के आधार पर गद्य के दो भेद बताये हैं (१) वचनिका और (२) दवावैत । वचनिका भी दो प्रकार की होती है (१) पदबन्ध (२) गदबन्ध । रासो में अधिकतर पदबन्ध वचनिकाएँ मिलती यथा " वचनिका : जमा सुविहानं । शाहबदीन सुल्तानं । पैगम्बर परवरदिगार। इलाह करीम कबार । सुल्तान सिकन्दर जाया । सुल्तान साहबदीन अबहर आया ।" वचनिकाओं की तुकात्मकता का कारण, कुछ विद्वान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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