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५८० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
मरुगुर्जर गद्य के छिटपुट उदाहरण १३ वीं शताब्दी से ही मिलने प्रारम्भ हो जाते हैं। राजस्थान में राज्याश्रय के कारण इनका लेखन और संरक्षण अधिक सुचारु रूप से हो सका और राजकीय प्रोत्साहन के कारण इसका क्रमशः विकास होता गया। फलतः गद्य-कृतियाँ नाना साहित्य रूपों में प्रचुर परिमाण में लिखी गईं। इनकी प्रामाणिक प्रतियां प्रत्येक शताब्दी. के प्रत्येक चरण की प्राप्त हो जाती हैं । इनकी अविच्छिन्न परम्परा १४ वीं शताब्दी से लगातार चलती है और परवर्ती देश्य भाषाओं के गद्य-साहित्य पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ा है । अध्ययन की सुविधा के लिए इस विस्तृत साहित्य को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-(१) जैन गद्य और (२) जैनेतर गद्य । जैनेतर गद्य साहित्य अधिकतर मरुगुर्जर की चारण शैली डिंगल में लिखा गया है। दोनों प्रकार का गद्य यद्यपि राजस्थान और गुजरात में ही लिखा गया है तथा भाषा भी मरुगुर्जर या उसकी विशेष शैली है किन्तु इनमें स्वभावगत पार्थक्य है । मरुगुर्जर जैनसाहित्य धर्मप्रधान है किन्तु चारण साहित्य राजाश्रित होने के कारण प्राकृत-जनों (राजाओं, सामन्तों, श्रीमंतों) का गुणानुवाद करता है। पहले में शान्तरस की और दूसरे में शृङ्गार अथवा वीररस की प्रधानता है । मरुगुर्जर जैन साहित्य इतिहास की कसौटी पर प्रायः खरा उतरता है किन्तु डिंगल साहित्य डींग और अतिरंजना के कारण इतिहासकार को निराश करता है। जैन कवि सायास साहित्यिक सौन्दर्य, अलंकार, चमत्कार, रसादि का आयोजन नहीं करता जबकि चारण कवि दरबारी मनोवृत्ति के कारण शब्दाडंबर, अलंकार-अतिशयोक्ति आदि का साभिप्राय प्रयोग करते हैं। कुल मिलाकर राजस्थान और गुजरात का मरुगुर्जर-गद्य साहित्य विविध विधात्मक, सम्पन्न, प्रमाणिक एवं प्रचुर है ।
___इस विशाल साहित्य में जैनेतर गद्यकारों का अंशदान प्रशंसनीय है। यह तो पहले भी कहा जा चुका है कि राजस्थानी और गुजराती भाषायें अपने शैशवकाल में एक ही थीं जिसे डॉ० टेसीटोरी ने पुरानी पश्चिमी राजस्थानी नाम दिया था। प्रस्तुत सन्दर्भ में उसे ही मरुगुर्जर कहा जा रहा है। इसका गद्य साहित्य दो भाषा-रूपों में लिखा गया (१) जैन लेखकों की स्वाभाविकमरुगुर्जर में और (२) चारणों द्वारा गढ़ी गई विशेष शैली--डिंगल में । प्रारम्भिक गद्य साहित्य अधिकतर पद्य-ग्रन्थों के बीच-बीच में प्रयुक्त गद्य खंडों के रूप में मिलता है जैसे कुवलयमालाकथा, जगत्सुन्दरीप्रयोगमाला, वर्ण रत्नाकर, कीर्तिलता और राउरबेल आदि । अजैन गद्यसाहित्य प्रायः चारणों द्वारा डिंगल में लिखा गया है । डिंगल काव्यभाषा-शैली का निर्माण पश्चिमी
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