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५७६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अतः इसमें पद्य साहित्य अपेक्षाकृत अधिक लिखा गया। इसी समय अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का प्रादुर्भाव प्रारम्भ हो गया था । कविजन इन नवोदित देश्यभाषाओं का भी प्रयोग करने लगे थे। इसलिए कुछ काल तक संक्रमण कालीन भाषा प्रयोग का प्रचलन साहित्य में मिलता है । यही कारण है कि एक ही रचना की भाषा को कभी अपभ्रंशअवहट्ट, कभी पुरानी हिन्दी-मरुगुर्जर या जुनी गुजराती अथवा प्राचीन राजस्थानी बताया गया है। सच पूछा जाय तो १२ वीं शती से १५ वीं शती तक की गुजराती, राजस्थानी और हिन्दी में कोई बड़ा भाषा वैज्ञानिक अन्तर नहीं दिखाई देता। एक ही प्रकार की भाषा राजस्थान, गुजरात और मालवा तक साहित्य में व्यवहृत हो रही थी। इसके लिए 'देश्य भाषा' सम्बोधन का प्रयोग किया जाता था और उसे ही यहाँ मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी कहा गया है। यही देश्य भाषा या उत्तरकालीन अवहट्ट अथवा पुरानी हिन्दी या मरुगुर्जर जनता के बोलचाल में प्रचलित थी। अतः इसमें गद्य साहित्य प्रचुर मात्रा में लिखा गया। ___ अपभ्रंश के गद्य और पद्य की भाषा में स्पष्ट अन्तर मिलता है। पद्य भाषा का आधार तद्भव और देशज शब्द है जबकि गद्य में तत्सम शब्दों के प्रयोग की प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई पड़ती है। १२ वीं शताब्दी के बोलचाल की भाषा का सबसे अधिक प्रामाणिक रूप दामोदर कृत 'उक्ति व्यक्ति प्रकरण' में प्राप्त होता है। दामोदर भट्ट काशी-कान्यकुब्ज नरेश गोविन्दचन्द्र गाहड़वाल की तीसरी रानी जो जैनमतावलम्बिनी थी, के आश्रित थे। इस रचना में लोक प्रलचित भाषा के उदाहरण उपलब्ध हैं।
'उक्ति' का अर्थ होता है 'लोक प्रचलित भाषा-पद्धति' और व्यक्ति का अर्थ होता है 'स्पष्टीकरण', अर्थात् लोकजीवन में व्यवहृत भाषा की विवेचना ही इस ग्रन्थ का लक्ष्य है । डॉ० सुनीति कुमार ने इसकी भाषा को कोसली या पूर्वी हिन्दी बताया है किन्तु यह ग्रन्थ १२ शताब्दी के जनमानस में अपभ्रंश से देश्य भाषाओं के जन्म लेने की प्रक्रिया का सच्चा प्रतिबिम्ब है। इस परम्परा में आगे चल कर अनेक 'उक्ति' ग्रन्थ लिखे गये जिनमें सं० १४५० में लिखा 'मुग्धावबोध औक्तिक' संक्रमण कालीन भाषा के अन्तिम मील का पत्थर है। इसके अतिरिक्त साधुसुन्दर गणि कृत 'उक्ति रत्नाकर' और उक्ति व्यक्ति की व्याख्या में लिखित 'उक्ति व्यक्ति विवृत्ति' इस प्रकार की अन्य उल्लेखनीय रचनायें हैं। रोडकृत राउरवेल भी बोलचाल (औक्तिक) की भाषा में रचित कोसली की महत्वपूर्ण पद्यात्मक कृति है जिसके बीच
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