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मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य सर्जनशीलता की अधिक परख हो सकती है, शायद इसीलिए 'गद्यं कवीनां निकष वदन्ति' कहा गया है।
हमारे देश में गद्य की प्राचीन और अटूट परम्परा संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश से होती हुई आधुनिक देश्यभाषाओं तक प्रवाहित होती आई है। अतः मरुगुर्जर गद्यसाहित्य के इतिहास की पूर्वपीठिका के रूप में प्राचीन गद्य साहित्य का एक विहंगम चित्र प्रस्तुत करना समीचीन होगा।
संस्कृत भाषा में गद्य का प्राचीनतम प्रयोग यजुर्वेद की तैत्तिरीय तथा मैत्रायणी संहिताओं में मिलता है। अथर्ववेद के छठे भाग में भी गद्य का प्रयोग हुआ है। ब्राह्मण ग्रन्थों और उपनिषदों में गद्य का बाहुल्य है। महाभाष्य के रचयिता महर्षि पतंजलि, मीमांसक शबरस्वामी, न्यायदर्शन के आचार्य जयन्तभट्ट तथा अद्वैतवाद के प्रवर्तक आद्य शंकराचार्य ने भी संस्कृत गद्य का पुष्ट प्रयोग किया है। सूत्रकाल के सभी विवेचनापरक शास्त्र गद्य में ही लिखे गये हैं।
जैन और बौद्ध साहित्य में भी प्राचीनकाल से ही गद्य का प्रयोग होता रहा है। इन धर्मों के आचार्यों ने प्राकृत, पाली और संस्कृत में प्रचुर गद्य साहित्य लिखा है। गुप्तकाल के पूर्व से ही बौद्ध एवं जैन पंडितों ने दार्शनिक विचारों की व्यन्जना के लिए संस्कृत गद्य का प्रयोग प्रारम्भ कर दिया था। नवीं और दशवीं शताब्दी के बाद प्राकृत और अपभ्रंश में लिखा गद्य कम उपलब्ध होता है जबकि संस्कृत गद्य में विविध स्तरीय रचनायें पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होती हैं। जैनाचार्यों ने तेरहवीं शताब्दी में संस्कृत गद्य में विविध प्रबन्ध (जीवनवृत्त) भी लिखे हैं। संस्कृत गद्य में विचारपरक शास्त्रीय गद्यग्रन्थों के अतिरिक्त अलंकृत गद्य भी प्रचुर परिमाण में लिखा गया । अलंकृत गद्य के प्राचीन नमूने महाक्षत्रप, रुद्रदामा और समुद्रगुप्त की गद्यप्रशस्तियों में मिलते हैं। संस्कृत की कथायें और आख्यायिकायें अलंकृत गद्य की प्रतिनिधि रचनायें हैं । अनेक जैनाचार्य संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे और उन्होंने प्राकृत की गूढ़ और क्लिष्ट रचनाओं को समझाने लिए संस्कृत गद्य का सहारा लिया और संस्कृत में प्रभूत गद्य साहित्य लिखा।
प्राकृत और अपभ्रंश में भी प्रचुर कथासाहित्य लिखा गया। किन्तु वह अधिकतर पद्य में लिखा गया। इसका यह अर्थ कदापि न लगाया जाय कि इन भाषाओं में गद्य लिखा ही नहीं गया। सर्वप्रथम प्राकृत गद्य हमें जैनागम साहित्य में उपलब्ध होता है। आचारांग के प्रथम एवं दूसरे श्रुत
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