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________________ अध्याय ६ मरु-गुर्जर जैन गद्य-साहित्य सामाजिक प्राणी को जीवन की सुरक्षा का ध्यान सर्वप्रथम होता है। उसकी सबसे प्रबल इच्छा 'जीने की इच्छा' है । इसी जिजीविषा के चलते मनुष्य को समाज का संगठन और भाषा का आविष्कार करना पड़ा। विद्वानों ने भाषा की अनेक परिभाषायें दी हैं किन्तु सभी इससे सहमत हैं कि 'मानवीय वाणी द्वारा मानवीय भावों की साभिप्राय एवं स्पष्ट अभिव्यक्ति ही भाषा है। भाषा का वरदान मिलने के बाद मनुष्य ने अपनी सम्पूर्ण व्यावहारिक आवश्यकताओं की अभिव्यक्ति के लिए गद्य को माध्यम बनाया । गद्य का अर्थ ही है 'कही जाने वाली बात' । अतः मानव जीवन के व्यवहार में गद्य का मौखिक प्रयोग पद्य की अपेक्षा अति प्राचीन है, किन्तु प्रत्येक भाषा के साहित्य में लिखित गद्य का इतिहास पद्य के पश्चात् प्राप्त होता है । जब छापेखानों की सुविधा नहीं थी और साहित्य को कंठस्थ करने की विवशता थी तब तुक, छंद, लय आदि के कारण गद्य की अपेक्षा पद्य को स्मरण रखना अवश्य ही आसान रहा होगा, लेकिन विज्ञान, समाजशास्त्र, राजनीति, विधि और चिकित्साशास्त्र जैसे अनेकानेक विषयों की शिक्षा पद्य में नहीं दी जा सकती थी और न प्रत्येक व्यक्ति कविता में चिट्टीपत्री लिख सकता था। सभी व्यक्ति कविता समझ भी नहीं सकते, उसको समझाने के लिए भी गद्यात्मक टीकाओं की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए कुछ देर-सबेर साहित्य में भी गद्य का प्रारम्भ हो ही जाता है। अतः गद्य साहित्य का इतिहास भी काफी प्राचीन है। किसी देश के बौद्धिक एवं वैज्ञानिक उत्कर्ष की परख के लिए गद्यसाहित्य का अवलोकन आवश्यक होता है। कविता के द्वारा यदि हम किसी समाज के हृदय का पर्यवेक्षण करते हैं तो उसकी भौतिक उन्नति, लौकिक रीतिनीति आदि का परिचय उसके गद्य द्वारा ही प्राप्त कर पाते हैं । व्यावहारिक गद्य के अलावा ललित गद्य में लेखक की प्रतिभा, कल्पना और 1. Language may be defined as the articulate expression of human thought by means of human speech-N. B. Divetia "Gujarati Language and Literature, vol II, p. 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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