SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 588
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु - गुर्जर जैन साहित्य ५७१ प्रयोग होता है । जैन साहित्य मूलतः निवृत्तिप्रधान है अतः प्रवृत्तिमूलक गृहस्थ जीवन का यह आदर्श भले हो किन्तु सम्पूर्ण यथार्थं नहीं हो सकता । फिर भी इस साहित्य में प्राप्त जनसामान्य के लिए नैतिक चरित्र और संयमित जीवनचर्या का संदेश आज के युग में पहले से भी अधिक प्रासंगिक हो गया है । यदि प्रासंगिकता को काव्य की कसौटी माना जाय तो मरुगुर्जर जैन साहित्य की प्रासंगिकता पर किसी युग में प्रश्नचिह्न नहीं लग सकता । भक्तिकाल के अनेक मधुर सम्प्रदायों का साहित्य कभी बेमानी भ हो जाय किन्तु इसी काल में लिखा गया जैनसाहित्य सदैव प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा और मनुष्य को उच्चतर जीवन की ओर अग्रसर करता रहेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy