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________________ ५७० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पूर्वदेश चैत्य रास, खीमाकृत शत्रुजय चैत्य परिपाटी, पार्श्वचन्द्र कृत वस्तु. पाल तेजपाल रास और वासण कृत आनन्दविमलसूरि रास आदि । ___इस शताब्दी में कई उत्तम अनुवाद भी किए गये जैसे विल्हण की पंचाशिका का ज्ञानाचार्य कृत अनुवाद इत्यादि । जैनेतर कवि-नंदवत्रीसी के लेखक नरपति और दामोदर, वीरसिंह, दल्ह एवं गणपति आदि की चर्चा यथास्थान हो चकी है। जैनेतर गुर्जर कवियों में इस शताब्दी के सर्व प्रसिद्ध व्यक्ति नरसिंह मेहता माने जाते हैं। अनेक विद्वान उन्हें गुर्जर साहित्य का आद्यकर्ता भी मानते हैं। उनका रचनाकाल सं० १५१२ से सं० १५३७ तक था। चूंकि वे जैन लेखक नहीं हैं वल्कि वैष्णवभक्त हैं अतः उनका विवरण नहीं दिया गया है। इनके अलावा इस काल के कवियों में भालण, केशव, भीम आदि जैनेतर कवि भी उल्लेखनीय हैं। श्वेताम्वर जैन कवियों ने प्रायः काव्यरचना मरुगुर्जर में किया किन्तु दिगम्बर कवियों का झुकाव हिन्दी की और अधिक था। वैसे १६वीं शताब्दी तक जिस प्रकार राजस्थानी ओर गुजराती में समानता थी उसी तरह हिन्दी और राजस्थानी में भी काफी सादृश्य था।'' राजस्थान के बागड़ प्रदेश और गुजरात में दिगम्बर भट्टारकों की गादियाँ थीं। इन भट्टारकों और उनके ब्रह्मचारी शिष्यों द्वारा लोकभाषा में विपुल साहित्य का सृजन किया गया, जिनमें भ० सकलकीर्ति और ब्रह्मजिनदास आदि का परिचय दिया जा चका है। इनकी भाषा में हिन्दी प्रयोग बहतायत से पाये जाते हैं। मरुगुर्जर में लिखित साहित्य की भाषाशैली भी स्पष्टतया दो प्रकार की है । चर्चरी, फागु आदि लोकसाहित्य की रचनायें जो जनसामान्य द्वारा गाई जाती थीं वे बोलचाल की भाषा के अधिक निकट हैं किन्तु स्तवन, स्तोत्र आदि पूजापाठ का साहित्य प्रायः परिनिष्ठित और अपभ्रंश गभित शैली में लिखा गया है । लोकगीत प्रारम्भ में मौखिक रूप से ही प्रचलित थे, बाद में जैनकवियों ने शृगार की पृष्ठभूमि पर शान्तरस का प्रभावशाली चित्र लोक साहित्य के माध्यम से अंकित किया। सिरिथूलिभद्र फागु, चर्चरी आदि इस कोटि की प्रारम्भिक रचनायें हैं। जैन साहित्य में जन सामान्य को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया। जनसाधारण की भाषा को काव्य का माध्यम बनाया गया किन्तु इसीलिए हम इसे उसी अर्थ में जनसाहित्य नहीं कह सकते जिस अर्थ में आज इस शब्द का १. श्री अ० च० नाहटा-'परम्परा' पृ० ६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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