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मरु गुर्जर जैन साहित्य इस शताब्दी में वल्लभ सम्प्रदाय के उदय और प्रचार के बाद कई जैन कवियों ने नेमिनाथ और स्थूलभद्र के रसिक चरित्रों को लेकर अनेक सरस काव्यकृतियाँ प्रस्तुत की, इनमें नेमिनाथ पर आधारित लावण्यसमय कृत विविध छंद युक्त कृति 'रंगरत्नाकर नेमिनाथ प्रबन्ध' सं० १५६४ और स्थूलिभद्र पर आधारित सहजसुन्दर कृत नानाछन्दों में निवद्ध कृति 'गुण रत्नकार छंद, सं० १५७२ का उल्लेख यथास्थान हो चुका है। सोमसुन्दर सूरि की शिष्य परम्परा में रत्नमंडन गणि, धनदेव गणि और स्वयम् सोमसुन्दर सूरि ने इस प्रकार के रसिक काव्य की रचना की और अन्य कवियों को प्रेरित किया। लावण्यसमय कृत 'नेमिनाथ हमचडी' 'स्थूलिभद्र एकवीसो आदि इसी प्रकार की रचनायें हैं। पुण्यरत्न ने नेमिनाथ यादवरास, पद्मसागर ने स्थूलिभद्र अणवीसो, शुभवर्धन शिष्य कृत स्थूलिभद्ररास और बुधराज कृत मदनरास इसी प्रेरणा से प्रसूत प्रस्तुतियाँ हैं।
इस शती में जैनदर्शन, पर्व और तीर्थों पर भी अनेक सुन्दर रचनायें की गई जैसे चन्द्रलाभ कृत चतुःपर्वी रास, धर्मसमुद्र कृत रात्रिभोजनत्याग, गजलाभ कृत बारव्रत चौ० और पार्वचन्द्र सूरि की आराधना पर आधारित अनेक रचनायें इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं। ____ लोक साहित्य-१६वीं शताब्दी में प्रभूत लोक साहित्य रचा गया । इनके लेखकों में जैन एवं जैनेतर विद्वान् भी हैं। इन लोकप्रिय रचनाओं में जैनतीर्थङ्कर, जैनतीर्थ और विक्रमादित्य जैसे महाराजा और महापुरुषों का इतिवृत्त अंकित किया गया है । जिनहर कृत विक्रमपंचदण्ड रास, राजशील कृत विक्रमादित्यखापरा रास, उदयभानु कृत विक्रमसेन रास, आदि कई रचनायें विक्रमादित्य के चरित्र पर आधारित हैं और उनके लोकप्रियता की सूचना देती हैं। इसी प्रकार कड़वा और पद्मसागर की लीलावती, सुमतिविलास रास नामक रचनायें पर्याप्त लोकप्रिय कथाओं पर आधारित हैं।
ऐतिहासिक प्रबन्ध रचना का प्रारम्भ आ० हेमचंद्र कृत द्वयाश्रय काव्य के साथ ही शुरू हो गया था अत. श्री देसाई जी ऐसी रचनाओं का प्रारम्भ. कर्ता श्री शामलभट्ट को मानना उचित नहीं समझते। इन रचनाओं में जैन लेखक अपने आचार्यों, महापुरुषों, मंदिरों, तीर्थों आदि का इतिहास पद्यबद्ध करते थे जैसे जंबूस्वामी रास, सहजसुन्दर कृत जंबुअतंरंगरास, धर्मदेव कृत वज्रस्वामी रास, हंसधीर कृत हेमविमल सूरि फागु, हंससोम कृत
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