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________________ ५६८ मरु गुर्जर जन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग १ के पृ० १३५ पर दिया है किन्तु प्रति के त्रुटित होने के कारण इसका पूर्ण पाठ और विवरण स्पष्ट प्राप्त नहीं हो सका है। __अज्ञात कवि कृत परनिंदाचौपइ (पद्य १७५ ) सं० १५५८ में लिखी एक मनोरंजक कृति है । इसका मंगलाचरण देखिये 'देवि सरस्वती पय पणमेवि, मनसिउं शिवनायक समरेवि, कहं कथा चउपई प्रबन्ध, पर निंदा ऊपरि सम्बन्ध । पण्डित धर्मी विनय विवेक, नीम निपुण आचार अनेक । तपसी दानी ए कहइ लोक, निंदा करइ तु गुण सवि फोक । इसमें से एक फोक शब्द निकाल देने पर यह हिन्दी की रचना ज्ञात होती है। भाषा में अधिक पार्थक्य अब भी नहीं प्रतीत होता। इस तरह की हिन्दी, गुजराती और राजस्थानी की मिली-जुली काव्य भाषा को मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी कहना ही समीचीन है। इसका अन्तिम दो छन्द नमूने के रूप में प्रस्तुत है :-- ‘पर निंदक नइ नरक निवास, आप निंदक नइ शिव सुखवास, दुख मन्दिर परनिंदा पाप, सुखमन्दिर निंदा आपाद ।' इसका रचना काल इस प्रकार बताया गया है :-- 'कला कुमुदनी वछर वेद, सूदिया सोमासर तसूरिद । नाग पण्डव संख्याइ तिथिवार, धुरिदिन आरम्भ पूर्ण विचार । निंदाना अवगुण जेतला, मइ नवि कहिवाई तेतला । प्रबन्ध सांभलयां तणु प्रमाण, निंदा मोकु तुम्हें सुजाण ।' अज्ञात कवि कृति 'मुनिपतिराजऋषिचरित्र'' यह, काफी बड़ी रचना है । इसका रचनाकाल भिन्न भिन्न प्रतियों में अलग-अलग प्रकार से वर्णित है । कहीं संवत पनर पंचासो' और कहीं 'संवत चउद पच्चासीइ' मिलने से शताब्दी का अन्तर पड़ जाता है अतः इसका बिवरण अनिर्णीत समझ कर छोड़ा जा रहा है। अज्ञातकवि कृत 'मंदोदरी संवाद' सं० १५६५ में लिखी गई कृति है। इस प्रकार की अनेक रचनायें अज्ञात कवियों की हैं जिनपर शोध होना अपेक्षित है जिससे इन रचनाओं तथा इनके रचनाकारों पर प्रकाश पड़ सके । इनमें कुछ रचनायें महत्त्वपूर्ण हैं। १. श्री अ० च० नाहटा-जै. ग० म० कवि भाग १, पृ० १३८ २. श्री देसाई-जै० गु० क०-भाग १, पृ० ९० ३. वही, पृ० ११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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