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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
५६७ अज्ञात ( केहरू ? ) कृत 'श्री जिनभट्टसूरि पट्टे जिन चन्द्रसूरि गीतम' दो गाथाओं की लघु रचना है जो मल्हार राग में निबद्ध हैं। श्री जिनचन्दसूरि का आचार्य पद स्थापन सं० १५१४ में हुआ था और सं० १५३० में स्वर्गवास हआ, अतः यह गीत इसी अवधि में किसी समय लिखा गया होगा। इसकी भाषा का नमूना देने लिए इसकी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत है : --
'कुंजर मयण नमवि मच्छरु करि, हरि हरु ब्रह्म नयहु जाणी, मूरिख विरहिणि बहु सोता पणुं पंच बागन नमनि आणी। रति अनइ प्रीति दिबसि विधिवतणु,
कवण कुमति तुव विधि रुठउ, भुजइ सुडि दण्डु दंतूसलि मुनि केहरु जब दिठि दीठउ ।' इन पंक्तियों में आया पद 'मुनिकेहरु' रचनाकार का नाम भी हो सकता है, परन्तु केहरु मुनि का कोई अन्य विवरण नहीं मिल सका अतः यह निश्चय नहीं कि ये कौन लेखक थे।
अज्ञात कवि कृत रयणावली ( ३३ गाथा ) सं० १५२० की रचना है। इसकी समाप्ति पर सूचित किया गया है कि यह कृति सुधानन्दन गणि के शिष्य द्वारा लिखी गई है । इसका अन्तिम छन्द इस प्रकार है :
'च्यारि रतनावलि गुणधार, पाटसूत्र मुक्ताफल हार, सरल कंठि नियहियडइ धरउ,
मुगति रमणि संइवरि तुम्हि वरउ ।'' अज्ञात कवि कृत 'प्रभवजम्बूस्वामिबेलि' सं० १५४९ में लिखी गई। इसका आदि छन्द निम्नांकित है :--
'करजोड़ी प्रभवु भणइ जम्बुकुमर अवधारि,
विषय सौख्य भोगवि भलां, रंगिइ पंच प्रकारि ।' अन्त 'कणय निवाणूं कोडि त्यजि नवपरणित अटुनारि,
प्रभवासिउं जम्बूकुमर, जुतू संजम भारि
क्षिपीय करम नई लीला पांमी, भुगति रमणी वरनारि ।' किसी अज्ञात कवि कृत 'हेमविमलसूरिविवाहलु' (पद्य ७१ ) की सूचना श्री अ० च० नाहटा जी ने जैन मरुगुर्जर कवि और उनकी रचनायें १. श्री अ० च० नाहटा-जै• म० गु० कवि पृ० ११७.११८ २. वही ३. वही पृ० १३२
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