________________
५६६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
'इय अइसय भाजन सिरि जिन शासन कानन पंचानन पवरू;
विवुहावलि बोहण गुणमणि रोहण, गुण निधानगुरु जयउचिरु ।। इस स्तुति में सिद्धान्तसागर और भावसागर के सम्बन्ध में ऐतिहासिक महत्व की सूचनायें दी गई हैं अतः यह तीन गच्छनायकों का इतिहास बताने वाली महत्वपूर्ण स्तुति है। इसके अनुसार सिद्धान्त सागर का जन्म सं० १५०६ में हआ। इनके पिता पाटण बासी सोनी जावड़ थे। माता का नाम पूरल दे था । इनकी दीक्षा सं० १५१२ और इन्हें आचार्य पद सं० १५४१ तथा गच्छनायक पद सं० १५४२ में प्राप्त हुआ। सं० १५६० में आपका तिरोधान हुआ। ___ भावसागरसूरि मारवाड़ के नरसाणी ग्रामवासी वोरासांगा की पत्नी सिंगार दे की कुक्षि से सं० १५१० में पैदा हुये । जन्म नाम भावड़ था । सं० १५२० में जयकेसर सूरि द्वारा दीक्षित हुए। सं० १५६० में आचार्य एवं गच्छपति पद प्राप्त हआ। आपका स्वर्गवास सं० १५८३ में हुआ। इस कृति का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है :'थांभपुरु सार का सार हंसोबम,
नमवि सिरिपाल जिणमपलमुत्तमतमं, सकल सुरिंद समुदाय सोहाकरं थुणिसु
गुणनायगं गुणनिहाणंगुरु । ऐ० ० काव्य संग्रह में संकलित १६ वीं शताब्दी की कुछ अन्य उल्लेखनीय रचनायें हैं 'कीर्तिरत्न सूरि चौपइ', क्षेमहंस कृत गुर्वावली, जिनहंस सूरि गीत आदि । इनमें से दो रचनायें तो ऐतिहासिक इतिवृत्त से सम्बन्धित हैं । क्षेमहंस की गूर्वावली में खरतरगच्छ की गुरु परम्परा दी गई है। इन कृतियों का ऐतिहासिक सूचनाओं की दष्टि से कुछ महत्व भले हो किन्तु भाषा विकास और काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से इनकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है । कीर्तिरत्नसूरि के सम्बन्ध में जयकीति, अभय विलास और सुमतिरंग ने भी गीत लिखे हैं। 'श्री कीर्तिरत्नसूरि फागु' के लेखक का नाम अज्ञात है। कीर्तिरत्नसूरि से सम्बन्धित अन्य गीतों का यथास्थान उल्लेख किया जा चुका है। कीर्तिरत्नसूरि च उपइ के लेखक कल्याणचन्द्र के साथ इसका विवरण दिया जा चुका है। १. जै० ऐ० गु० का० संचय पृ० २२३ २. वही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org