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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ५६५ 'तुह वाणी अभिनवी सूखडी, सुणी नीगमइ भवियण भूखड़ी।' उदयचूला का वर्णन करता हुआ कवि कहता है : 'कदली दल कोमल अमल काय, सामिणि गुण गाईं सुर निकाय, पालइ सयल अ जीव निकाय, जाणो ऊपनी अभिनवी भुवनमाय । इसकी अन्तिम तीन पंक्तियाँ इस प्रकार है :'नवि मांगउं राज नवि अमरवास; देज्यो देज्यो निअ पयकमल वास, जे भणइअ भणावइ ओ संझाय ते थाइ सिवनगरी ना राय। सिरि महत्तरा उदयचूल महिमपूर, जयउ जयउ जांजगित पइ सूर । इसी संकलन में अज्ञात कवि कृत 'गुणनिधानसूरि स्तुति' नामक रचना भी संकलित है। गुणनिधान आंचलगच्छ के ६२ वें पट्टधर थे। आपका जन्म पाटण के श्रीमाली नगराज सेठ की पत्नी लीला की कुक्षि से सं० १५४८ में हुआ था। आपका जन्म नाम सोनपाल था। सिद्धान्तसागर ने सं० १५५२ में दीक्षित किया, विद्याभ्यास कराया और सं० १५६५ में भावसागरसूरि ने इन्हें सूरि पद प्रदान किया। सं० १५८४ में महोत्सव पूर्वक इन्हें गच्छ नायक पद प्रदान किया गया। इसी अवसर पर या इसी के आसपास इनके किसी शिष्य ने यह स्तुति लिखी होगी। देवसागर रचित व्युत्पत्तिरत्नाकर की प्रशस्ति से पता चलता है कि सं० १६०१ में आपका निर्वाण हुआ। सिद्धान्तसागर ६० वें और भावसागर इस गच्छ के ६१ वें पट्टधर थे। भाषा की दृष्टि से यह स्तुति उल्लेखनीय हैं। इसमें संस्कृत, अपभ्रंश और खड़ी बोली के प्रयोग मिले-जुले मिलते हैं। अपभ्रंश का यह छन्द देखिये : 'आ गया तत्थ सिद्धान्तसायर गुरु, विहरमाण जणानन्दणे सुरतर, सेणीउ मेहकुमरव्वजिण अग्गए, तं कुमार गुरुणं तहां अप्पए। इसमें 'आ गया' स्पष्ट खड़ी बोली की क्रिया है। शेष पद अपभ्रंश गर्भित है । इसका अन्तिम छन्द निम्नांकित है :१. जैन ऐतिहासिक गु० काव्य संचय पृ० २२२ २. वही ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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