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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सामे आभरणे दीपंते, झगमग आरी से दीसंते,
जिम तेजोमय सद्धितु जय जय ।। ऋतुराज आया, यात्रा में आई सुन्दरियों का कवि इन शब्दों में उल्लेख करता है
'आव्यु ए रितुराज काज करती सवे भामिनी,
यात्रा मास वसन्त नी पद्मिनी आवी मिलई सामिनी। संघ द्वारा दर्शन पूजन का इस फागु में विस्तृत वर्णन किया गया है ।
मोहिनी फागु-यह रम्य रचना भी किसी अज्ञात कवि की है। उसकी कथावस्तु प्रचलित ग्राम लोकवार्ता से ली गई है। मोहिनी नामक एक वनजारिन का पति परदेश गया। पति की अनुपस्थिति में उसने चार यारों को रिझाया और पति के आने पर उसे भी झांसा देती रही। इसमें काफी अंश अश्लील भी हैं जिन्हें छोड़ दिया गया है। यह उन ग्राम्य गीतों, जो वसन्त ऋतु में फागु के नाम से गाये जाते थे और साहित्यिक फागु के बीच की जोड़ने वाली कड़ी के रूप में महत्वपूर्ण है। इससे दोनों के ऐतिहासिक सम्बन्ध पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। चम्पक नगर में रहने वाली मोहिनी स्वभाव से छिनाल थी
'नयणि अभीसरु वींधई छूटइ तरुण न कोइ', अर्थात् किसी को छोड़ती नहीं थी। उसका स्वास्थ एवं रूप भी उन्मादक था, यथा
"हियडइ हसमस करता प्रगट किया थण तेउ,
सोवन कलश कि पूरियां कामी अमी रस लेउ । उसका पति परदेश गया इधर वसन्त की मादक हवा चली, मोहिनी काम से बेहाल हो गई । 'मोहिणी मनमथु मोहिउ पहिलउ विरह प्रवेसि' । उसने चार यारों को पटाकर उनके लिए प्रहर बाँट दिये, और दिनरात भोग विलास में बिताने लगी। इसी बीच उसका पति आया, उसने पति को बहकाया कि मैंने स्वप्न में तुम्हारी मृत्यु देखी, मैंने ज्योतिषी से पूछा तो उसने बताया कि चार युवक बुलाकर साथ खिलाओ, तो दोष दूर हो जायेगा । मैं इस समय वहीं कर रही थी। पति खुश हो गया। कुल ५३ छन्दों की यह रचना स्थान-स्थान पर काफी अश्लील हो गई है । यह किसी जैनेतर रसिक की लिखी प्रतीत होती है । १. प्राचीन फागु संग्रह क्रम सं० १८ २. वही
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