SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 573
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'क्रोध मान माया जल बहइ, उपशम दलूयां मेल्हि, संवर सषाइयु राष जे, जाणइ विवेक विचार, श्री जिन ।' रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है :– 'अहे संवत पनर सत्यासि आषाढ़ शुदि रविवार, श्री जिन, एह फाग जे गाइसिउं तेह घरि मंगल चार, श्री जिन शासन गाइसिउं लाभई सुष अपार ।१२। ५५६ अर्थात् यह रास सं० १५८७ में लिखा गया । इसकी प्रति रषिराज ने सुश्राविका वाछी के पठनार्थं तैयार की थी । अज्ञात कविकृत 'नेमिनाथ फागु' एक उत्तम रचना है । नेमि के विरह में राजुल अपने बारह महीने किस वेदना के साथ व्यतीत करती है, यही इस फागु का वर्ण्य विषय है । यह एक प्रकार का बारहमासा भी है किन्तु नाम फागु है अतः दोनों का मिला-जुला रूप इसमें मिलता है । नेमिराजुल की कथा इतनी लोकप्रिय है कि केवल प्राचीन फागु संग्रह में ही इस विषय पर ९ रचनायें हैं | आषाढ़ मास से कवि विरह वर्णन प्रारम्भ करता है'निशि अधियारी अकेली, मधुर म वासिलि मोर, विरह संतापी पापीउ वालिम हउइ कठोर ।' इसी प्रकार वर्ष के बारह महीने उस विरहिणी को एक से अधिक एक कष्ट देकर व्यतीत हो जाते हैं 'बारहमास माहि भूलिगु जेठ वडेरुहोइ, पभणइ राणी राइमइ नेमि न मेलइ कोइ' । ' अन्त में कृष्ण उसे सान्त्वना और उपदेश देते हैं, तथा वह भी जप तप में तल्लीन हो जाती है और नेमि से पूर्व ही भवमुक्त भी हो जाती हैजप तप संयम आदरी, कीधउ निर्मल काइ, नेमि पहिली राइमइ, इम बइठी शिवपुरी जाइ ॥ २३ ॥ इन रचनाओं की भाषा काव्योचित सामर्थ्य एवं माधुर्य आदि गुणों से संयुक्त है तथा इनमें उच्च कोटि का काव्यत्व भी दृष्टिगोचर होता है । अज्ञात कवि कृत 'हेमरत्नसूरि फागु' - यह काव्य १६वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में विनयला साध्वी के आग्रह पर लिखा गया । हेमचन्द्रसूरि का जन्म भीमग के घर हुआ था । ये बचपन से ही उदासीन थे, अमरसिंहसूरि की शिक्षा से मोहभंग हो गया और संयम ग्रहण किया। इस फागु में कवि १. सांडेसरा - प्राचीन फागु संग्रह, पृ० १२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy