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________________ ५५४ __ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'आविउ बसन्त कि सुणि रे सही, आंबा डालि कोइलि गहगही, कसिम परिमल राहणउ जाइ, वनि वनि वनि वहिस्यु बणराइ । वसन्त वर्णन के नाम पर वृक्षों की यह सूची देखिये : 'केलि खजूरी नइ नारिंगी, अम्बा जांबू नइ भारिंगी, पाडल सेवंत्री मुचकन्द, रमइ वृदावन गोपी गोव्यंद । सर्वत्र सूची गिना कर परम्परा का निर्वाह ही नहीं किया गया है, कहींकहीं प्रकृति का सुन्दर वर्णन भी किया गया है, यथा-- 'सरभि समीरण बायइ बाअ, पाडल फूल षिरइ जलमांहि तीरइ तीरइ सारंग फिरइ, सरोवर पाणी इह कांकरइ ।' इसी प्रकार नारी सौन्दर्य का भी एक उदाहरण देखिये : 'करइ शृङ्गार सार गलइ हार, चरणे नेउरना झमकार, चित्रा लंकि इति कुच कठोर, पडंती रसियां चित्त चकोर । पिहिरण नवरंग अनोपम चीर, गोरी चंपावन्न सरीर, तपत कंच कसण कसमसइ, युगम पयोधर भारिल लसइ।' जंघ यशाउ कदली थंभ, रूपइ जमलि न दीसि रंग, मदन मेषली हीरे जड़ी नहरि जिस्या सत कमल पाषड़ी। पद्मिनि हस्तनी चित्रणि नारि, लीलावंती रमइ मुरारि, सोल सहस बनइ मिली अनंद, रास भासि गाइ गोटयंद।'' इत्यादि यह शृङ्गार वर्णन हिन्दी कविता के रीतिकाल का अग्रगामी मालूम पड़ता है और लगता है कि पुरानी हिन्दी या मरुगुर्जर में एक ऐसी काव्य धारा वर्तमान थी जिसमें एक विशेष रीति या पद्धति पर नायक-नायिका की शृङ्गारी चेष्टायें वणित की जाती थीं। हिन्दी की तमाम रीतिकालीन शृङ्गारी कविता उसी अग्रगामी काव्य धारा की उत्तराधिकारी है। चुपइ फागु में विषय वस्तु एवं काव्य बंध फागु का है किन्तु छन्द चौपाई प्रयुक्त किया गया है । अतः उसका नाम 'चुपइ फागु' सार्थक है। इसमें प्रत्येक महीने का उद्दीपन विभाव के रूप में वर्णन किया गया है जैसे पौष का एक वर्णन प्रस्तुत है :-- 'प्रिय तणा गण पोसि मास, सेजइ पइठी बालभ पास, मेहिली लाज अंग आपीइ, प्रीय तणां रस द्राम पामीइ।' १. डा० भो• सांडेसरा-प्राचीन फागु संग्रह पृ० ११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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