________________
मरु-गुर्जर जैन साहित्य
५५१ अज्ञात कवि कृत कृतियाँ-अब तक १६ वीं शताब्दी के ज्ञात कवियों की रचनाओं का परिचय यथासम्भव दिया गया है, अब कुछ ऐसी रचनाओं का परिचय दिया जा रहा है जिनके लेखकों का नाम अज्ञात है। ये रचनायें विभिन्न संकलनों में संकलित हैं या इतिहास ग्रन्थों में उनका उल्लेख हो चुका है। इनमें से कुछ रचनायें साहित्यिक महत्त्व की हैं और कुछ ऐतिहासिक महत्त्व की हैं अतः इन्हें छोड़कर कोई साहित्येतिहास ग्रन्थ पूर्ण नहीं कहा जा सकता । विभिन्न जैन-भांडारों में न जाने कितनी हस्तलिखित प्रतियाँ अभी भी वेष्ठनों में बँधी मूल्याङ्कन की प्रतीक्षा कर रही हैं, लेकिन यह कार्य इतिहास लेखन से अधिक अन्वेषण और खोज का है इसलिए वह कार्य इस ग्रन्थ में पूरा करना न सम्भव है और न अपेक्षित है। अकेले १६ वीं शताब्दी की पचासों ऐसी कृतियाँ हैं जो काफी समय से पाठको पंडितों के सामने हैं किन्तु उनके लेखकों के नाम और अन्य विवरणों पर अभी तक प्रकाश नहीं पड़ सका है। यह कार्य भी विद्वानों और अनुसंधित्सुओं के ध्यानाकर्षण की प्रतीक्षा कर रहा है। जैन श्रावकों और साधुओं ने जिस निष्ठा से ग्रन्थ लेखन और भण्डारण का श्लाघनीय कार्य किया है विश्वास है, उसी तत्परता और आस्था के साथ वे लोग इस विशाल साहित्य के शोध-सम्पादन और प्रकाशन कार्य भी अवश्य करेंगे।
___ सर्वप्रथम भोगीलाल सांडेसरा और सोमाभाई पारेख द्वारा सम्पादित 'प्राचीनफागुसंग्रह' में संग्रहीत उन कृतियों का विवरण दिया जा रहा है जिनके लेखकों का नाम-पता अज्ञात है ये रचनायें अधिकतर जैन विद्वानों द्वारा लिखित हैं किन्तु कुछ रचनायें जैनेतर लेखकों की भी विचारणीय हैं ।
विरह देसाउरी फाग' यह जैनेतर कृति है किन्तु १६ वीं शती की महत्त्वपूर्ण फागु कृति है। इसमें लौकिक नायक-नायिका को आलम्बन बनाकर 'बसन्त बिलास' की तरह पहले विप्रलंम और बाद में संयोग शृङ्गार का वर्णन किया गया है। काव्य के उत्तराद्ध में नायक प्रवास से लौटता है इसलिए 'विरह देसाउरी' नाम सार्थक है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :
'आज सखी मन कम्पये तालावेलि करेइ,
फागु खेलणदिन आवीउ प्रिय देसान्तर लेइ । १. 'विरह देसाउरी फागु' प्राचीन फागु संग्रह पृ० २३४-२४०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org