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५४६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रक गादी पर ज्ञानभूषण बैठे और सं० १५५७ तक भट्टारक रहे । तत्पश्चात् अपने शिष्य विजयकीति को भट्टारक पद देकर स्वयम् मुमुक्षु बन गये । आपने स्वयम् साहित्यसृजन किया और प्राचीन साहित्य की प्रतियां कराकर उन्हें सुरक्षित किया। ___आत्मसंबोधन काव्य, ऋषिमण्डलपूजा, तत्वज्ञान-तरंगिनी, पूजाष्टक टीका, भक्तामर-पूजा, श्रुत-पूजा, सरस्वती-पूजा, शास्त्र-मंडल पूजा आदि अनेक रचनायें आपने संस्कृत में की हैं । मरुगुर्जर की प्रसिद्ध रचना आदीश्वर फागु का उल्लेख पहले किया गया है। यह दो भागों में निबद्ध है। इसमें भगवान आदिनाथ के जीवन का संक्षिप्त वर्णन है जो पहले संस्कृत तत्पश्चात् पुरानी हिन्दी (मरुगुर्जर) में वर्णित है । इसमें २३९ पद्य संस्कृत के और २६२ पद्य पुरानी हिन्दी के हैं । प्रारम्भ में सरस्वती की वंदना इस प्रकार की गई है :
'आहे प्रणमइ भगवति सरसति जगति विबोधन माय,
गाइस्यूं आदि जिणंद सुरिंदवि वंदित पाय ।। आदिनाथ की बाललीला वर्णन का उदाहरण निम्न पंक्तियों में देखिये -
'आहे देवकुमार रमाडइ मातज माउरक्षीर, एकधरइमुख आगिल आणीय निरमलनीर । आहे एक हंसावइ ल्यावइ कइडि चडावीय बाल,
नीति नहीय नहीय सलेखन नइ मुखिलाल। बड़े होकर आदिनाथ इन्द्र के समान प्रजा पर शासन करने लगे। एक दिन नीलांजना नामक नर्तकी की नृत्य करते करते मृत्यु हो गई जिसे देखकर इन्हें विरिक्त हो गई और सब त्याग कर मुक्ति मार्ग पर चल दिए । वे सोचते हैं :
'आहे आयु कमल दल सम चंचल चपल शरीर, यौवन धनइव अथिर करम जिम करतल नीर । आहे भोग वियोग समन्नित रोग तण घर अंग,
मोहमहा मूनिनिंदित नारीयसंग। इसका रचना काल सं० १५६० से कुछ पूर्व ही है।
'पोसहरास' व्रत के माहात्म्य पर आधारित रचना होते हुए भी अपनी १. क. च० कासलीवाल-राजस्थान के जैन सन्त प० ४९-६३
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