SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ५४३ चउपइ' लिखी। इसमें नल और दमयन्ती की प्रसिद्ध कथा जैनमतानुसार बर्णित है । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिये 'सयल संघ सुहसंतिकर, प्रणमीय शांति जिणेसु, दानशील तप भावना, पुण्य प्रभाव भणेसु । सुणंता सुपुरिसवर चरिय, वाधइ पुण्य पवित्त, दवदंती नल रायनू निसुणु चारु चरित्त ।' इसका रचना काल इस प्रकार कहा गया है : संवत पनर वारोत्तर बरसे, चित्रकूट गिरिनगर सुवासे, श्रीयसंध आदर अति घणइ है। अह चरित जे भणइ भणावइ, रिद्धिसिद्धि सुख उच्छव आवइ, नितुनिमंदिर तस तणुइ ओ ।३३१।' यह ३३१ पद्यों की रास रचना है । रास की वर्णन प्रणाली मनोहर है। श्री ऋषिवर्धनसूरि ने अतिशयपंचाशिका या जिनेन्द्रातिशयपंचाशिका की भी रचना की है। इसके तीन हस्तलिखित प्रतियों की सूचना श्री मो० द० देसाई ने दी है। ज्ञान (ज्ञानचन्द्र) आप सोरठगच्छ के क्षमाचन्द्र सूरि की परम्परा में वीरचन्द्र सूरि के शिष्य थे। आपने सं० १५६५ चैत्र शु० ६ गुरु० मंगरोल में वंकचूलरास (पवाडउ) लिखा । सं०१५९३ श्रावण बदी ९ गुरु० मंगरोल में 'वेतालपंचवीसी' और सं० १५९९ (मागसर शुदी १० गुरुवार) में 'सिहासनवत्रीसी' लिखी, आपकी एक छोटी रचना 'बारमास' (१८ कड़ी) भी है जो जैनयुग पु० ५ पृ० २५६ पर प्रकाशित है। सर्वप्रथम इसके ही आदि अन्त के पद्य उद्धृत किए जा रहे हैं। आदि 'सरसती चित समरी करी प्रणमी जिन पाय, राजुल कहे सुणि चांदला चंदा कहजेरे जाय । यदुपति नेमजी गाइयो, दीठे अति आणंद, विशेष (वीर) चंद कविराज नो शिष्य कहे ज्ञानचंद ।' १. श्री देसाई-जै० गु० क० भाग १, पृ० ४८ एवं श्री अ. च० नाहटा परम्परा पृ० ६० १. श्री देसाई-जै० गु० क०-भाग ३, पृ० ४६७ ३. वही, पृ० ५४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy