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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इस संघ के साथ पं० कमलधर्म ने भी यात्रा की थी यथा'कमलधर्म पंडित वरु अ मा० जात्रा कीधी संघ साथ, सु० सफल जनम हवइ मुझ हुओ ओ मा० मुगति हुई हव हाथ । गुरु परम्परा इस प्रकार बताई गई है :
'तपगछनायक शिवसुखदायक श्री हेमविमल सूरिंद गुरु, तस आण धुरंधर विबुध पुरंदर कमलधर्म पंडितवरु । तस सीस नामइ हंससोमइ तीरथमाल रचि सुविमल, जे भवि भणेसि भावि सुणेसि, ते नर पामइ जात्रफलो ।" इस में कुल ५३ गाथायें हैं । संघ यात्रा का वर्णन और चैत्य दर्शन का पुण्यफल दिखाना ही इस रचना का उद्देश्य है । रचना सरल मरुगुर्जर में लिखी गई है ।
श्रुतकीर्ति - आपने सं० १५५२ में हरिवंश पुराण और सं० १५५३ में 'परमेष्ठि प्रकाशसार' नामक ग्रन्थ लिखे । हरिवंश पुराण इस परम्परा की आदिकालीन मरुगुर्जर साहित्य के अन्तिम छोर की रचना है । परमेष्ठीप्रकाशसार में सृष्टि की उत्पत्ति और नाना प्रकार के जीवादि का वर्णन किया गया है । तीसरी रचना योगसार में योग, प्राणायाम और धार्मिक चिंतनादि का विवेचन किया गया है । उक्त तीनों ग्रन्थ अप्रकाशित है । हरिवंश पुराण के अलावा शेष दोनों ग्रन्थ उपदेशपरक हैं और लघुकाय हैं, जिनकी भाषा सरल और भाव व्यन्जना सपाट हैं ।
सं० १५५२ की लिखी 'धर्मपरीक्षा" नामक कृति हरिषेण की धर्मपरीक्षा के आधार पर भ० श्रुतिकीर्ति ने लिखी । हरिषेण ने सं० ११४४ में जयराम की धर्मपरीक्षा के आधार पर अपनी धर्मपरीक्षा पद्धड़िया छन्द में की थी । इस प्रकार हम देखते हैं कि इसका रचनाक्रम प्राकृत, अपभ्रंश से होता हुआ महगुर्जर तक अक्षुण्य है । इस महवत्त्पूर्ण ग्रन्थ के रचयिता हरिवंश के कर्त्ता श्रुतकीर्ति ही हैं या अन्य कोई श्रुतिकीर्ति हैं यह पता नहीं चल सका । दोनों का रचनाकाल एक ही है अतः पूरी संभावना है कि दोनों एक ही कवि हैं ।
ऋषिवर्धनसूरि - आप आंचलगच्छीय गच्छनायक जयकीर्ति सूरि के शिष्य थे । आपने सं० १५१२ (चित्तौड़) में 'नलदमयंतिरास' नलराज
१. श्री मो० द० देसाई - जै० गु० क० भाग १ पृ० ११३
२. हिन्दी साहित्य का वृहद् इतिहास ३ पृ० २४७ और २८१
३. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी - राजस्थानी सा० का सामान्य परिचय |
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