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________________ ५४१ मरु-गुर्जर जैन साहित्य से की और कहा कि इस साधु का सर्वत्र स्वागत शाहंशाहों जैसा हो रहा है, यह ठीक नहीं है। बस फिर क्या था, तुरन्त घुड़सवार सूरि जी की तलाश में दौड़ाये गये किन्त जैन श्रावकों एवं साधओं ने मिलकर बादशाह को समझा बुझा कर शान्त कर दिया। हेमविमल सूरि ने अन्त में आनन्द विमल सूरि से गणमुख्य का पद भार सँभालने का प्रस्ताव किया किन्तु उनकी विरक्ति को देख कर यह पद सौभाग्यहर्ष को सौंप दिया और स्वयम् सं० १५८३ में स्वर्ग सिधारे । फाग की अन्तिम पंक्तियाँ देखिये 'हेम विमलगछ नायक दायक मुगतिविलास, व्रत पूजा गिरिमंदर, कंदर गिरिकविलास । दानवद्धन वरपंडित, पंडित वादीय वीर, चरण कमलि अलिज मलि रमलि अ रसि हंसधीर । संवत पनर ओ चउपनइ ऊपनइ बुद्धि प्रकाश, फाग रचिउ सुमुहुरतइ पुरतइ श्रावणमासु ।। इस फाग में ऐतिहासिक महत्त्व की अनेक सूचनायें हैं। आणंदविमल सम्बन्धी कई शंकाओं का इससे निवारण होता है और पता चलता है कि उनके रहते सौभाग्यहयं को गछ नायक क्यों बनाया गया। इसी प्रकार अन्य कई सूचनायें सरल भाषा में उपलब्ध हैं। इसमें हेमविमलसूरि के संयम, चारित्र और उच्चशील का वर्णन करके उनकी मदन निवारण शक्ति की पराकाष्ठा दिखाई गई है और इसी अर्थ में इसका फागु शीर्षक चरितार्थ होता है। इस फागु का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है : 'अहो मन धरी सरस ते सरसती, वरसती अविरल वाणि, सिरि तपगछपति गाइसु, भाविसुनित सुविहाणि । हेमविमल सूरीसर इसर किर अवतार, अणुदिण मयण निवारण तारण सयल संसार । हंससोम-तपगच्छ के आ० हेमविमलसूरि के शिष्य कमलधर्म आपके गुरु थे । आपने सं० १५६५ में 'पूर्वदेशचैत्यपरिपाटीरास' लिखा। इसका रचनाकाल कवि ने इन पंक्तियों में बताया है : 'संवत पनर पासठइ मा० जात्र करी उदार सु० संघ सह धरि आविआ ओ मा० दिन दिन उच्छव सारस ।' १. ऐ० जे० गु० काव्यसंचय पृ० १९० २. देसाई-० गु० क०-भाग १, पृ० ९८ , पृ० ११३ ३. " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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