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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसकी रचना तिथि कवि ने इस प्रकार बताई है 'हुँ अल्पश्रुत कविय न जाणउं, अच्छूत्र मिछ। दुक्कड़ आण उ, विधि पक्षि बहु श्रुत सोधीइ ओ । संवत पनर नव असीइ भाद्रव आठमि आदितवार समतिसागर सूरि उपदेसीउ अ, हेमकान्ति हरषउ आराहु, सामी वीर जिणेसर ध्याउ, ऋद्धि वृद्धि कल्याण करो।' हेमध्वज-आपने सं० १५५० में 'जैसलमेरचंत्यपरिपाटी' (१६ गाथा ) लिखी। रचना तिथि का उल्लेख कवि ने इस प्रकार किया है 'संवत पनरह सय पंचासइ भाव भगति नमंसिया, मगसिरइ मासइ मन उल्हास इ हेमध्वज पसंसिया। इसका प्रथम छन्द वाग्वाणि की स्तुति में लिखा गया है, यथा 'पहिलहुं समरसि वाग्वाणि, माता द्यउ मुखि विमल वाणि, जिम चैत्र प्रवाड़ी करू अ रंगि, जेसलमेरू देखी हरषि अंगि। इसका अन्तिम छन्द भाषा के उदाहरणार्थ प्रस्तुत है-- 'गणधर गण मूरति गरुइ, आदि जिणवर पादुका, मरुदेवि मायड़ी सयल संघह, करउ मङ्गल मालिका ।' हंसधीर-आप तपागच्छ के आ० हेमविमलसूरि के शिष्य दानवर्द्धन के शिष्य थे। आपने सं० १५५४ में 'हेमविमलसूरिफाग' की रचना की। यह रचना 'जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय' में प्रकाशित है। इसी के साथ जै० ऐ० गु० काव्य संचय में 'हेमविमलसूरिस्वाध्याय' भी प्रकाशित है किन्तु उसके लेखक का ठीक पता नहीं चल पाया है। इस फाग के अनुसार आ० हेमविमल सूरि का जन्म जीराउला पार्श्वनाथ के समीपवर्ती बड ग्राम निवासी श्री गङ्गाधर की पत्नी गङ्गा की कुक्षि से सं० १५२० में हुआ था। आपका मूल नाम हदराज था। लक्ष्मीसागर सूरि के प्रभाव से वैराग्य दृढ़ हुआ। सं० १५२८ में आपने दीक्षा ली, तभी नाम हेमविमल पड़ा। आपने सुमति साधु से शास्त्राभ्यास किया। सं० १५४८ में गच्छ नायक हुए। सं० १५७० में आपने महोत्सवपूर्वक आनन्दविमल सूरि को डामिला ग्राम में सूरि पद प्रदान किया। इनकी लोकप्रियता की शिकायत किसी ने बादशाह १. श्री देसाई-जै० गु० क०, भाग ३, खण्ड २ पृ० १४९४ २. श्री अ० च० नाहटा-म० गु० जे० कवि पृ० १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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