________________
मरु-गुर्जर जैन साहित्य
१३७ इस उद्धरण से पता चलता है कि आप क्षान्तिमन्दिर के शिष्य थे और पाठक उपाधि से विभूषित थे। आपकी भाषा पर गुजराती का प्रभाव स्वभावतः अधिक है। इस रचना में कवि ने शील की सुरक्षा के उपाय और उसके महत्त्व तथा उससे प्राप्त पुण्य फल का वर्णन किया है।
हर्षमूर्ति-आप भावडारगच्छ के भावदेव सूरि के शिष्य विजयसिंह सूरि के शिष्य थे। आपने 'पद्मावती चौपइ' की रचना की है जिसमें गुरु परम्परा के अन्तर्गत कालकसूरि से हरषमूरति तक का उल्लेख है। इसमें कवि ने पद्मावती के चरित्र द्वारा शील की महिमा का उद्घाटन किया है। शील की महिमा पर जोर देता हुआ कवि कहता है
'सीलइ सवि सुख पामीइ, सील लगइ हुइ ऋद्धि, सीलइ महिमा विस्तरी पामइ बहु परिसिद्धि, सीलइ संकट सह टलइ, सीलई हुइ बहुरंग,
सुरनर सेवइ पयकमल दिनिइ हुई उत्सरंग।' इसके प्रारम्भ में भी दान, शीत, तप आदि का बखान किया गया है । यथा
आदि जिणेसर पयकमल विमल चित्त पणमेवि, सील तणा महिमा सुणु हीयडइ हरष धरेवि । दान सीलतप भावना, अ छइ च्यारि सार,
तीह चिहुमाहि अधिके रडु सील रयण संसारि । आपकी एक अन्य रचना 'चन्द्रलेखाचौपइ' सं० १५६६ की लिखी हुई है । भिन्न-भिन्न प्रतियों में पाठभेद के कारण रचनाकाल कहीं १५६६ और कहीं १५६० भी लिखा है, यथा
'पनर सठइ संवत्सर जांणि, श्रावण सुदि तेरसि मन आणि । तिणि दीहाडइ हुउ विचार, चुपई कीधी हरष अपार । चन्द्रलेषानुं लेइ सम्बन्ध सामायकनु रचिउ प्रबन्ध,
हरष मूरति मुनिवर इम भणइ, गुणइ ते सिव सुख लहइ ।' लेकिन दूसरी प्रति में पाठान्तर है, यथा
___'पनर छासठि वरसइ जाणि, श्रवण सुदि तेरस मनि आणि ।' १. वही, भाग ३, प० ५३१ २. वही, भाग १, पृ० १०५ ३. वही, भाग ३, पृ० ५३०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org